Hindu Mughal Queen : आजीवन हिंदू परंपरा के साथ जीने वाली मुगल रानियों का कैसे हुआ था अंतिम संस्कार?
Hindu Mughal Queen : मुगल काल में दो ऐसी रानियां हुईं, जो हिंदू थीं और जिनका राजदरबार में काफी महत्व भी था. इसकी वजह यह थी कि इन दोनों रानियों ने मुगल वंश को उनका वारिस दिया था. अकबर की पत्नी हरका बाई जिन्हें मरियम उज जमानी की उपाधि दी गई थी और जहांगीर की पत्नी जगत गोसाईं ऐसी ही दो रानियां थीं. इन दोनों रानियों ने मुगल शासकों से शादी करने के बाद भी अपनी हिंदू परंपरा को छोड़ा नहीं और उनका पालन किया. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इनकी मौत के बाद क्या इनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति से हुआ या फिर इन्हें मुसलमानों की तरह दफन किया गया.
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Hindu Mughal Queen : भारतीय इतिहास में जब भी मुगल काल की चर्चा होती है, तो एक ओर जहां उनके ऐश्वर्य और युद्धों की चर्चा होती है; वहीं उन रानियों की भी चर्चा होती है जो हिंदू थीं. मुगल शासकों पर यह भी आरोप लगता रहा है कि उन्होंने जबरन धर्म परिवर्तन कराया. औरंगजेब इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जिसने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया और कई मंदिरों को ध्वस्त किया. लेकिन इन सबके बीच दो रानियों की कहानी चौंकाती है, जो हिंदू थीं और अपने-अपने पति की खास पत्नी बनीं और उनके बेटे मुगल काल के बादशाह. अकबर की पत्नी हरकाबाई यानी मरियम उज जमानी और जहांगीर की पत्नी जगत गोसाईं का नाम इसमें सबसे गौर करने लायक है, जो शादी के बाद भी आजीवन हिंदू रहीं और उनका अंतिम संस्कार भी हिंदू रीति-रिवाज से हुआ.
अकबर की पत्नी हरकाबाई यानी मरियम उज जमानी
अकबर और हरकाबाई की शादी एक राजनीति संधि के तहत हुई शादी थी. अकबर की रानियों में यह प्रमुख रानी थी, क्योंकि हरकाबाई ने मुगल वंश को उसका वारिस दिया था. जहांगीर का जन्म हरकाबाई की कोख से हुआ था. मुगल काल में हरकाबाई की हैसियत बहुत बड़ी थी और वे सत्ता के गलियारों में भी अपनी दखल रखती थीं. उन्हें मरियम उज-जमानी की उपाधि प्राप्त थी, बावजूद इसके हरकाबाई ने अपने धर्म और उसके संस्कारों से कभी अलगाव नहीं किया. हरकाबाई कृष्णभक्त थीं और इतिहास यह कहता है कि अकबर ने उसके लिए महल में अलग से कृष्ण मंदिर बनवाया था, जहां वह अपनी पूजा करती थीं. अकबर ने कभी भी हरकाबाई को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए बाध्य नहीं किया. अकबर वैसे भी मुगलों में सबसे सहिष्णु शासक था और वह हरकाबाई के साथ पूजा-पाठ में शामिल भी होता था. आमेर की इस राजपूत राजकुमारी का विवाह 1562 ईस्वी में अकबर से हुआ था. 1605 में हरकाबाई का निधन आगरा में हुआ. उसके बाद उसका अंतिम संस्कार भी हिंदू रीति से हुआ. हालांकि इतिहास इस बारे में ज्यादा कुछ बताता नहीं है, किसी भी नामचीन साहित्यकार ने इस विषय पर कुछ लिखा नहीं है. लेकिन हरकाबाई का जो मकबरा आगरा में है उसे अगर आप देखेंगे तो यह स्पष्ट होगा कि उनकी कब्र नहीं बनी है, यानी उनका अंतिम संस्कार उन्हें दफन करके नहीं किया गया है. प्रसिद्ध लेखक और प्रबुद्ध मुसलमान जावेद अख्तर ने हाल में एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि मुगलों ने अपनी हिंदू रानियों का धर्मांतरण नहीं कराया, बल्कि उनके धर्म के साथ ही उन्हें स्वीकारा. हरका बाई हों या जगत गोसाईं सभी आजीवन हिंदू रहीं और निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार उन्हें जलाकर किया गया. जहां उनकी अंत्येष्टि हुई उसी जगह पर उनका मकबरा बना है, जिसे कब्र नहीं छतरी कहा जाता है.
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जगत गोसाईं जहांगीर की पत्नी थीं
जगत गोसाईं जिनका नाम मानवती बाई था वह मारवाड़ की राजकुमारी थीं. अकबर के बेटे जहांगीर से उसकी शादी हुई थी. वह काफी धार्मिक प्रवृत्ति की थी और आजीवन उसने अपने धर्म का पालन किया. उसकी कोख से शाहजहां का जन्म हुआ, जो आगे चलकर मुगलों का बादशाह बना. रानी मानवती की मौत 45 वर्ष की उम्र में 1619 में हुई थी. उसकी मौत के बाद आगरा के देहरा बाग वर्तमान के अर्जुन नगर में उनकी छतरी बनाई गई है, जहां उनकी मर्जी के अनुसार अंतिम संस्कार हुआ था. जगत गोसाईं जहांगीर की सबसे प्रभावशाली पत्नियों में भले न गिनी जाती हों, लेकिन उसकी अहमियत शाहजहां की माता होने के कारण बढ़ जाती है.वे दरबार में रहते हुए भी राजपूताना संस्कृति से गहरी जुड़ी रहीं.
छतरियों का महत्व
राजपूताना संस्कृति में छतरियों का काफी महत्व है. यह उनके वास्तुशिल्प का हिस्सा नहीं, बल्कि शहीदों और राजघरानों की स्मृति का प्रतीक है. जिस जगह पर किसी राजा या रानी का अंतिम संस्कार होता था उस स्थान पर उनकी याद में पत्थर या संगमरमर की छतरी बनाई जाती थी. इसी परंपरा के तहत जोधाबाई और जगत गोसाईं की भी छतरियां बनीं. लेकिन कुछ इतिहासकारों ने इन्हें ‘मकबरा’ कह दिया, जिसकी वजह से यह मान लिया गया कि उन्हें दफनाया गया था, जबकि उन छतरियों को देखने से यह स्पष्ट होता है कि उनकी अंत्येष्टि हुई थी, क्योंकि वहां पर कब्र जैसी कोई आकृति मौजूद नहीं है.
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