Durga Puja : क्या आप जानते हैं मां दुर्गा ने कब किया था महिषासुर का वध? अष्टमी और नवमी के संधिकाल में होती है विशेष संधि पूजा
Durga Puja : शारदीय नवरात्र के मौके पर देवी दुर्गा की विशेष पूजा का विधान है. इस कालखंड के दौरान ही देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था. इसी वजह से शारदीय नवरात्र बहुत ही खास माना जाता है. देवी दुर्गा ने जिस समय महिषासुर का वध किया था, उस समय उनकी विशेष पूजा होती है, जिसे संधि पूजा कहा जाता है.
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Durga Puja : दुर्गा पूजा के दौरान संधिपूजा का विशेष महत्व है. यह संधिपूजा अष्टमी तिथि की समाप्ति और नवमी तिथि के प्रारंभ के वक्त की जाती है. दोनों तिथियों की यह संधिबेला या संधिकाल
बहुत ही खास माना जाता है,पौराणिक कथाओं के अनुसार यही वह समय है जब देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था.
क्या है संधि पूजा (Sandhi Puja)?
बंगाल, बिहार,झारखंड और पूर्वी भारत के अन्य राज्यों में दुर्गा पूजा के दौरान संधि पूजा (Sandhi Puja) का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि अष्टमी और नवमी तिथि के मिलन का समय संधि पूजा (Sandhi Puja) का होता है. इस समय को धार्मिक दृष्टिकोण से काफी अहम माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि देवी दुर्गा ने इसी संधि बेला में महिषासुर का वध किया था. यह संधिकाल कुल 48 मिनट का होता है और इसे अष्टमी के अंतिम 24 मिनट और नवमी के प्रारंभिक 24 मिनट के रूप में देखा जाता है.
शिवालय ट्रस्ट कोलकाता के श्री ब्रह्मानंद (अभिजीत शास्त्री) बताते हैं कि इस संधि बेला में भी वह क्षण सबसे महत्वपूर्ण है, जब अष्टमी का अंत और नवमी तिथि का पहला दंड शुरू होता है, उसकी वक्त बलिदान होता है. पूजन की शुरुआत अष्टमी तिथि से ही होती है, लेकिन बलिदान नवमी के प्रथम दंड में होता है. इसी बलिदान की वजह से ही इसे महापूजा कहा जाता है. इस समय पर देवी का स्नान, पूजन, बलिदान और हवन, इन सबको मिलाकर ही दुर्गा पूजा को महापूजा कहा जाता है. इस अवसर पर दो तरह की पूजा का विधान है, इस मौके पर मां के चामुंडा स्वरूप की पूजा होती है और दूसरे में मां दुर्गा की ही पूजा होती है.
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महिषासुर वध से क्या है संबंध
दुर्गा सप्तशती में देवी महात्म्य है यानी देवी का बखान किया गया है. उसके अनुसार देवी दुर्गा ने संधि काल में राक्षस चंड और मुण्ड का वध किया था और चामुंडा का रूप धारण किया था. दुर्गा सप्तशती के अनुसार देवी ने इसी कालखंड में महिषासुर का वध किया था. दुर्गा सप्तशती के तीसरे अध्याय में देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध की कहानी वर्णित है. इसमें यह बताया गया है कि किस प्रकार देवी ने महिषासुर का संहार किया. कुछ परंपराएं संधिकाल को महिषासुर के वध के अंतिम क्षणों से जोड़ती हैं, तो कुछ इसे चंड-मुण्ड के वध का काल मानती हैं. इसी वजह से संधि पूजा को दुर्गा पूजा का सबसे ऊर्जावान और शक्तिशाली अनुष्ठान माना जाता है.
संधि पूजा के दौरान 108 दीपक और कमल फूल का महत्व
दुर्गा पूजा के दौरान अष्टमी और नवमी तिथि की संधि बेला में महा पूजा होती है. इस पूजा में 108 दीपक जलाने का विधान है. श्री ब्रह्मानंद (अभिजीत शास्त्री) बताते हैं कि देवी की इस महापूजा में 108 दीपक जलाने और 108 कमल पुष्प उन्हें अर्पित करने का विधान है. इससे संबंधित एक कहानी भी है कि जब भगवान राम ने रावण का वध करने के लिए देवी दुर्गा की पूजा की थी, तो उन्होंने 108 कमल फूल उन्हें चढ़ाने का संकल्प लिया था. उस वक्त देवी ने एक पुष्प अपनी माया से गायब कर दिया था, तब भगवान राम ने यह सोचा कि उन्हें राजीवलोचन कहा जाता है. राजीव, कमल फूल का पर्यायवाची है, अत: उन्होंने अपने आंख देवी को अर्पित करने का सोचा, तब देवी प्रकट हुईं और बहुत खुश हुईं. उनकी भक्ति के फलस्वरूप उन्होंने भगवान राम को विजय का आशीर्वाद दिया था.
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