गंभीर अपराध के लिए हल्के शब्दों का प्रयोग क्यों? पढ़ें क्षमा शर्मा का आलेख
Heinous Crime : पीढ़ियां बदल गयीं, स्त्रियों के प्रति सोच बदल गयी, लेकिन ये शब्द न बदले. इन दिनों एक और शब्द बहुतायत से प्रयोग होता है- दबंग. कोई भी लड़ाई-झगड़ा हो, मार-पीट करने वालों, हत्या करने वालों को दबंग कह दिया जाता है. उदाहरण के तौर पर- दबंगों ने दलितों को सताया.
Heinous Crime : मनचले ने लड़की पर तेजाब फेंका, सिरफिरे आशिक ने महिला पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किया. मनचला करता था पीछा, मनचले ने की लड़की के पति की पिटाई. मनचला लड़की के ससुराल जा पहुंचा. सिरफिरा आशिक बच्चा उठा ले गया. सिरफिरे आशिक ने लड़की की मां को घायल किया. सिरफिरे आशिक ने दूल्हे पर गोली चलायी. सिरफिरे ने लड़की के कपड़े फाड़े. ये दो शब्द हम लगातार चैनलों और अखबारों में देखते हैं. स्त्रियों के प्रति गंभीर अपराध करने वालों के लिए ये शब्द क्यों गढ़े गये हैं, समझ में नहीं आता.
मनचले का अर्थ है, किसी पर किसी का मन आ गया. यानी, मन मचल उठा. हमारी तरफ ब्रज प्रदेश में इस शब्द को खाने-पीने के अर्थों में भी इस्तेमाल करते हैं कि आज अमुक चीज खाने के लिए मन चल रहा है. स्त्री के संदर्भ में इस शब्द के उपयोग का अर्थ भी इसी तरह तो निकाला जायेगा कि किसी स्त्री पर मन आ गया. यानी कि वह स्त्री को पसंद करने लगा. पसंद करने लगा तो उसका पीछा करने लगा. तेजाब फेंकने लगा, हत्या करने लगा. इसका क्या अर्थ. एक तरह से यह शब्द जैसे स्त्री के प्रति किये गये अपराध को कम करके आंकता है. यही नहीं, अपराध करने वाले को वैधता प्रदान करता है, क्योंकि उसका तो मन चल गया, क्या करता बेचारा. जैसे कि इसमें स्त्री का ही कोई दोष हो.
इसी तरह का शब्द है, सिरफिरा आशिक. सिरफिरे का मतलब यही तो होता है न कि जिसका सिर फिरा हुआ है. जो होशो-हवास में नहीं है. आशिक सिरफिरा था, इसलिए वह स्त्रियों के प्रति तरह-तरह के अपराध करने लगा. उन्हें ब्लैकमेल करने लगा. जैसे ही किसी आशिक को सिरफिरा कहा, उसके अपराध की गंभीरता जैसे मासूमियत में बदलने लगी. सिरफिरा, यानी कि उसे कुछ दिमागी समस्या है. और दिमागी रोगों से परेशान लोगों को सहानुभूति से देखा जाना चाहिए, न कि एक अपराधी की तरह. इसलिए यदि वे स्त्रियों को परेशान कर रहे हैं, तो भी कोई बात नहीं. इन लोगों ने जिन स्त्रियों को सताया, उन्हें तरह-तरह से परेशान किया, क्या इस तरह के शब्द लिखने वालों ने कभी उन स्त्रियों से पूछा है कि जब ऐसे लोगों ने उन्हें तंग किया, तब उनकी जिंदगी कैसे नर्क बन गयी. बहुत के संबंध टूट गये. बहुत की जान चली गयी. कई अपंग हो गयीं. और ऐसा नहीं है कि ये दोनों शब्द आज की खोज हों. ये अरसे से चलन में हैं.
पीढ़ियां बदल गयीं, स्त्रियों के प्रति सोच बदल गयी, लेकिन ये शब्द न बदले. इन दिनों एक और शब्द बहुतायत से प्रयोग होता है- दबंग. कोई भी लड़ाई-झगड़ा हो, मार-पीट करने वालों, हत्या करने वालों को दबंग कह दिया जाता है. उदाहरण के तौर पर- दबंगों ने दलितों को सताया. दबंगों ने फसल काट ली. जानवर खोल ले गये. दबंग चढ़ दौड़े. आखिर ये दबंग कौन होते हैं. क्या ये मनुष्य नहीं, या कि किसी विशेष प्रजाति के हैं. यह शब्द जानबूझकर जाति वैमनस्य पैदा करता है. क्योंकि किसी की तो जाति बतायी जाती है, और किसी की छिपा ली जाती है. यदि बता रहे हैं, तो दोनों पक्षों की जाति बताइए. न बतानी हो, तो किसी की भी मत बताइए. कम से कम समाज को जाति के जहर में तो मत झोंकिए. वैसे ही इस समाज में अन्य परेशानियां कोई कम नहीं हैं.
पुरुषों की तरह स्त्रियों से संबंधित भी दो शब्द हैं, जो मीडिया में अक्सर दिखाई देते हैं. परंतु ये वे शब्द नहीं हैं, जो मीडिया के लोग अपनी तरफ से लिखते, बताते हैं. ये तो वे हैं, जिन्हें स्त्रियां ही खुद बोलती हैं. आम तौर पर किसी पर दुष्कर्म के आरोप लगाने के लिए इन्हें प्रयोग किया जाता है. अमुक ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म किया. या किसी पेय पदार्थ में नशीला पदार्थ मिलाकर दुष्कर्म किया. कई मामलों में ऐसा हो सकता है, पर क्या हर मामले में ऐसा ही होता होगा. जिसके साथ आप वर्षों से लिव-इन में रह रहे हैं, नहीं भी रह रहे, तो वर्षों से संबंध हैं. मान लीजिए ये संबंध टूट गये, तो इसे झांसा देना कैसे कहा जा सकता है. झांसे का मतलब धोखा देना होता है. जो लड़कियां वयस्क हैं, या शादीशुदा हैं, फिर भी किसी संबंध में हैं, तो ऐसा कैसे है कि उन्हें कोई झांसा देता रहे और उन्हें इसका पता ही न चले. किसी बच्ची या किशोरी के साथ ऐसा हो, तो माना भी जा सकता है. लेकिन वयस्क स्त्रियों के साथ हमेशा ऐसा कैसे होता है कि कोई झांसा देकर उनका शोषण करता रहे या किसी पेय में नशीला पदार्थ मिला दे.
अदालतें इस बारे में भी कई बार बहुत सख्त टिप्पणियां कर चुकी हैं. कह चुकी हैं कि वर्षों तक सहमति से बने संबंध दुष्कर्म नहीं कहे जा सकते. न ही पढ़ी-लिखी रोजगार शुदा स्त्रियां ऐसी हो सकती हैं कि कोई उन्हें लगातार धोखा देता रहे और उन्हें इस धोखे का पता ही न चले. कई बार संबंध न चल पाने पर, शादी से मुकर जाने पर बदले की भावना के तहत पुरुषों पर ऐसे आरोप लगा दिये जाते हैं. दुख की बात तो यह है कि जो स्त्रियां, लड़कियां वास्तव में ऐसे अपराधों की शिकार होती हैं, उनमें से अधिकांश न्याय के दरवाजे तक नहीं पहुंच पातीं. सो उन्हें न्याय भी नहीं मिल पाता है. स्त्रियों को भी यह सोचना चाहिए कि ऐसा करके वे उन स्त्रियों की राह कठिन बनाती हैं, जो वास्तव में अपराध की शिकार हैं.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)
