समाज छाेड़ नहीं पा रहा रंगभेद का विचार, पढ़ें क्षमा शर्मा का लेख

Racism : भारत में गोरे रंग को लेकर अजीब किस्म की धारणा है. सालों पहले एक मित्र ने बताया था कि उनकी बेटी का विवाह इसलिए नहीं हो पा रहा, क्योंकि वह सांवली है. लड़कों के लिए जहां टॉल, डार्क एंड हैंडसम का मुहावरा चलता है, वहीं लड़कियों के बारे में ससुराल वालों की चाहत होती है फेयर एंड होमली.

By क्षमा शर्मा | September 1, 2025 6:14 AM

Racism : हाल ही में अमेरिका के एक फेयरनेस ब्रांड के जेल को बेचने पर ब्रिटेन में पाबंदी लगा दी गयी. यह जेल वहां बहुत लोकप्रिय था. कारण बताया गया कि इस उत्पाद के विज्ञापन में काली त्वचा को आफत और सफेद त्वचा को बेहतरीन बताया गया था. सरकार को इस बारे में शिकायतें मिली थीं. इसलिए इसे बेचने पर पाबंदी लगा दी गयी. दशकों पहले अपने यहां भी एक ऐसी क्रीम के विज्ञापन खूब आते थे, बल्कि यों कहें कि दूरदर्शन और रेडियो पर छाये रहते थे. न केवल महानगरों, बल्कि गांवों में इस क्रीम की बहुत मांग थी. हर लड़की इसे लगाकर गोरी बनना चाहती थी. पुरुष भी इसके बड़े ग्राहक थे. इस क्रीम के बारे में कहा जाता था कि इसे लगाने से कोई भी गोरा हो सकता है. व्यापारिक मसलों से जुड़ी एक पत्रिका ने अपने सर्वेक्षण में बताया था कि इस क्रीम की दक्षिण भारत में बेतहाशा मांग है. वहां लोग किसी भी कीमत पर इसे प्राप्त करना चाहते हैं. दक्षिण भारत की फिल्में इन दिनों चैनलों पर खूब आती हैं. इन्हें देखें, तो रंग के बारे में यह भेदभाव खूब दिखाई देता है.

इन फिल्मों की अधिकांश नायिकाएं बेहद गोरी होती हैं और हीरो सांवले. इसके अलावा नायिकाएं वही छत्तीस, चौबीस, छत्तीस के आंकड़े की होती हैं और हीरो खूब थुलथुल और बहुत बार नाटे भी, लेकिन गोरी नायिकाएं इनके पीछे भागती रहती हैं, यानी गोरा होने और दिखने का सारा भार स्त्रियों पर ही है. और, सिर्फ दक्षिण भारतीय फिल्में ही क्यों, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी हीरोइन को गोरा ही होना पड़ता है. बहुत कम स्त्रियां ऐसी मिलेंगी, जिन्हें उनके सांवले होने पर भी फिल्मों में काम मिला.


भारत में गोरे रंग को लेकर अजीब किस्म की धारणा है. सालों पहले एक मित्र ने बताया था कि उनकी बेटी का विवाह इसलिए नहीं हो पा रहा, क्योंकि वह सांवली है. लड़कों के लिए जहां टॉल, डार्क एंड हैंडसम का मुहावरा चलता है, वहीं लड़कियों के बारे में ससुराल वालों की चाहत होती है फेयर एंड होमली. छपने वाले वैवाहिक विज्ञापनों में यह बात बखूबी देखी जा सकती है कि अधिकांश लोगों को वधू गोरी ही चाहिए. गोरेपन के प्रति यह आकर्षण हमारे समाज में आखिर कहां से आया होगा. बहुत से लोग कहते हैं कि यह अंग्रेजों से आया है. तभी यदि गोरी बहू हो, तो उसकी तारीफ कुछ ऐसे की जाती रही है-अरे, हमारी बहू तो बस ऐसी है, जैसे गोरी मेम. हाथ लगाओ, तो मैली होय. या कि बर्फ-सी सफेद है.

ऐसा कहने वाली भी अक्सर स्त्रियां ही होती हैं. इनमें से अधिकांश स्त्रियां काली मां को देवी मानती हैं. पार्वती और राधा के बारे में भी कहा जाता है कि वे सांवली थीं. दूल्हा चाहे जैसा चलेगा, लड़का काला हो, तो भी कोई बात नहीं. उनकी चाहत भी बर्फ जैसी पत्नी प्राप्त करने की होती है. और तो और, बेचारे जानवरों को भी इस रंगभेद ने नहीं बख्शा है. काली बिल्ली कहीं दिख जाए, तो लोग रास्ता बदल लेते हैं. श्यामा गाय के बारे में फैला रखा है कि उसके दूध में कीड़े पड़ जाते हैं.


बेशक हम राजनीति में रंगभेद के खिलाफ रहे हों, लेकिन समाज में बाकायदा रंगभेद देखने को मिलता है. ऐसे में सिर्फ दक्षिण अफ्रीका ही क्यों, हम भी कोई कम नहीं हैं. स्त्री के सौंदर्य का मतलब है कि उसे हर हाल में गोरी होनी चाहिए. पश्चिमी देशों के प्रति हमारे समाज में अऩुराग का भाव है, लेकिन आज के इस दौर में भी अधिकांश पश्चिमी देशों में रंगभेद जारी है. हम भारतीय इन देशों को स्वर्ग समझते हैं. सोचते हैं कि एक बार इन देशों में जाने का मौका मिल जाए, तो जीवन सुधर जाए. इन देशों में रंगभेद चाहे कानूनी तौर पर मना हो, मगर उसकी एक महीन धारा दिखती है.

वहां हम भारतीयों को ब्राउन कहकर पुकारा जाता है. हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर तगड़ा टैरिफ लगाया, तो वहां के एक प्रमुख उद्योगपति ने कहा कि हमें ब्राउन्स लोगों की जरूरत है. यही नहीं, अमेरिका में तो खुलेआम श्वेत वर्चस्व की वकालत की जा रही है. कहा जाता है कि अमेरिका गोरों का देश है. यहां किसी और के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं किया जा सकता. बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, उससे पहले वहां यह बहस खूब चली थी कि क्या अमेरिका में कोई अश्वेत राष्ट्रपति बन सकता है? और क्या अमेरिका राष्ट्रपति पद पर किसी अश्वेत या स्त्री के लिए तैयार है, क्योंकि ओबामा का मुकाबला हिलेरी क्लिंटन से था, लेकिन इस बार ट्रंप की जीत के बारे में कहा जा रहा है कि इसके पीछे यह विचार भी रहा है कि अमेरिका गोरों का है.


वक्त चाहे जितना बदल गया हो, रंगभेद का विचार लौट-लौटकर आता रहता है. इसके खिलाफ आवाजें भी सुनाई देती रहती हैं. कुछ साल पहले मशहूर अभिनेत्री कंगना ने कहा था कि वह कभी किसी फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन नहीं करेंगी. अपने देश के विवाह के बाजार में जब तक गोरी दुल्हन की मांग रहेगी, तब तक काले-गोरे के भेद से मुक्त होना मुश्किल दिखाई देता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)