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अगंभीर होते ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और चीन के बीच मौजूदा तनाव को समाप्त करने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की है. इससे पहले भी वे एक बारभारत और पाकिस्तान के बीच भी पंच बनने की पेशकश कर चुके हैं. यह रवैया दिलचस्प भी है और चिंताजनक भी. न तो भारत ने और न ही चीन ने अमेरिका से बीच-बचाव करने का आग्रह किया है, फिर भी बड़बोले ट्रंप विवाद में कूद पड़े हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और चीन के बीच मौजूदा तनाव को समाप्त करने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की है. इससे पहले भी वे एक बार भारत और पाकिस्तान के बीच भी पंच बनने की पेशकश कर चुके हैं. यह रवैया दिलचस्प भी है और चिंताजनक भी. न तो भारत ने और न ही चीन ने अमेरिका से बीच-बचाव करने का आग्रह किया है, फिर भी बड़बोले ट्रंप विवाद में कूद पड़े हैं. एक क्षण के लिए अगर यह मान भी लिया जाए कि उनका इरादा नेक है,वे दो पड़ोसी देशों के संबंधों को सामान्य बनाने की इच्छा रखते हैं तथा अपने इरादे से उन्होंने दोनों देशों को अवगत भी करा दिया है, तो फिर इसकी मुनादी सोशल मीडिया पर करने की क्या जरूरत है! इसका सीधा मतलब तो यही हैकि उनका रुख गंभीर नहीं है और वे दो एशियाई ताकतों के बीच तनाव को अपने अहं को तुष्ट करने के लिए भुनाना चाहते हैं.

उल्लेखनीय है कि वे ट्विटर पर अक्सर विवादित और भ्रामक बातें लिखते रहते हैं. हाल ही में ट्विटर नेजब उनके रवैये पर सवाल उठाया, तो उन्होंने सोशल मीडिया को ही प्रतिबंधित करने की धमकी दे दी है. भारत ने अपनी स्थिति को स्पष्ट कर दिया है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा में किसी भी बदलाव को स्वीकार नहीं करेगा तथा चीन के रुख का जवाब क्षमता और संयम के साथ दिया जायेगा. इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन व्यापारिक और सामरिक रणनीति से दक्षिण एशिया समेत महादेश के अन्य हिस्सों में अपना वर्चस्व बढ़ाना तथा भारत की बढ़त को बाधित करना चाहता है. यह भी सही है कि अमेरिका ने अक्सर भारत की पक्ष धरता की है तथा दोनों देशों के बीच ठोस रणनीतिक संबंध हैं.

अनेक देशों के साथ मिलकर भारतऔर अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा का वातावरण बनाने की दिशा में प्रयासरत हैं ताकि निर्बाध व्यापारिक आवागमन सुनिश्चित किया जा सके. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत पड़ोसी देशों के साथ अपने द्विपक्षीय समझौतों को निर्धारित करने तथा सीमा व अन्य विवादों को निपटाने के लिएअमेरिका या किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को स्वीकार कर लेगा. चाहे चीन होया पाकिस्तान, आपसी विवादों के समाधान के लिए व्यवस्थाएं हैं और भारत ने उन व्यवस्थाओं को हमेशा महत्व दिया है, जबकि चीन और पाकिस्तान की ओर से उनके उल्लंघन के कई उदाहरण हैं. भारत ने केवल पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के मसले को ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया है क्योंकि आतंक पूरे विश्व और मानवता के लिए खतरा है. यदि राष्ट्रपति ट्रंप सचमुच गंभीर हैं, तो उन्हें पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाना चाहिए और पाकिस्तान को शह देनेकी चीनी नीति का विरोध करना चाहिए. फिलहाल भारत को मौजूदा तनाव के संबंध में कूटनीतिक तौर-तरीकों का इस्तेमाल करते हुए चीन से संवाद करते रहने कीनीति को जारी रखना चाहिए.

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