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अफगानिस्तान की अस्थिरता

अंतरराष्ट्रीय समुदाय तथा अफगानिस्तान सरकार की कोशिशों के बावजूद आतंकी गिरोह तालिबान की गतिविधियां जारी हैं. पिछले हफ्ते काबुल में संसद के निकट और कंधार में सरकारी गेस्ट हाउस पर हुए हमले इस बात के ताजा सबूत हैं. अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी पाकिस्तानी सेना द्वारा तालिबान को दी जा रही मदद का मुद्दा उठा चुके […]

अंतरराष्ट्रीय समुदाय तथा अफगानिस्तान सरकार की कोशिशों के बावजूद आतंकी गिरोह तालिबान की गतिविधियां जारी हैं. पिछले हफ्ते काबुल में संसद के निकट और कंधार में सरकारी गेस्ट हाउस पर हुए हमले इस बात के ताजा सबूत हैं. अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी पाकिस्तानी सेना द्वारा तालिबान को दी जा रही मदद का मुद्दा उठा चुके हैं. बीते दिसंबर में ‘हार्ट ऑफ एशिया’ सम्मलेन ने भी अपने प्रस्ताव में पाकिस्तान की धरती पर पल रहे आतंकी गुटों पर चिंता जतायी थी. इसके बावजूद पाकिस्तानी रवैये में किसी सुधार के संकेत नहीं हैं. इसी वजह से अफगानिस्तान की जनता के विभिन्न तबकों में पाकिस्तान के खिलाफ नाराजगी बढ़ती जा रही है और विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. भारत ने भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तानी सरकार और सेना के दोहरे चरित्र को रेखांकित किया है, लेकिन वैश्विक कूटनीतिक समीकरणों का लाभ उठा कर पाकिस्तान अपने विरुद्ध किसी ठोस कार्रवाई से बचता रहा है.

बहरहाल, अगले सप्ताह अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के आने के बाद हालात बदलने के आसार हैं. अमेरिका के अगले रक्षा सचिव के रूप में कार्यभार संभालने जा रहे पूर्व सैन्य प्रमुख जनरल जेम्स मैटिस ने बयान दिया है कि तालिबान और उससे जुड़े गिरोह पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल कर रहे हैं. मैटिस अफगानिस्तान युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं और वहां की अस्थिरता के अलग-अलग आयामों को बखूबी समझते हैं. इसी बीच अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में लगे अमेरिका के स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल ने रिपोर्ट दिया है कि अफगान सेनाएं देश की सुरक्षा कर पाने में सक्षम नहीं हैं. ऐसे में यह उम्मीद बढ़ जाती है कि वैश्विक समुदाय, खासकर ‘हार्ट ऑफ एशिया’ समूह, तालिबान की चुनौती का सामना करने के लिए प्रभावी कदम उठायेगा.

अफगानिस्तान में अमन-चैन दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के विकास के लिए बहुत जरूरी है. इसके लिए पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने और आतंक पर अंकुश लगाने के काम को प्राथमिकता देनी होगी. इस प्रक्रिया में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है. आशा है कि अमेरिका, रूस और चीन अपनी आपसी खींचतान से परे भारत और अफगानिस्तान की चिंताओं पर ध्यान देंगे तथा इस क्षेत्र में शांति और विकास के लिए समुचित पहल करेंगे.

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