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एक जरूरी फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में आगामी एक अप्रैल से राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर 500 मीटर के दायरे में शराब की दुकानें बंद करने का आदेश दिया है. इस मामले की सुनवाई करते हुए पिछले सप्ताह न्यायालय ने हर साल सड़क दुर्घटनाओं में डेढ़ लाख मौतों पर चिंता जतायी थी. प्रधान न्यायाधीश की […]

सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में आगामी एक अप्रैल से राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर 500 मीटर के दायरे में शराब की दुकानें बंद करने का आदेश दिया है. इस मामले की सुनवाई करते हुए पिछले सप्ताह न्यायालय ने हर साल सड़क दुर्घटनाओं में डेढ़ लाख मौतों पर चिंता जतायी थी. प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने शराब लॉबी के दबाव में अंधाधुंध परमिट बांटने की प्रवृत्ति पर टिप्पणी की है.
शराब के भयावह सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर अक्सर चर्चा की जाती है. लेकिन, संवैधानिक निर्देश के बावजूद सरकारें शराब पर अंकुश लगाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाती हैं. शराब व्यवसाय से जुड़े लोग भी पैसे के दम पर ऐसी किसी पहल को कुंद करने की जुगत लगाते रहते हैं तथा सरकारें शराब पर लगनेवाले शुल्क से होनेवाले राजस्व की कमाई की दुहाई भी देती रहती हैं. जब बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की थी, तब कुछ समूहों ने बड़ी आलोचना की थी. लेकिन, आज राज्य में शराबबंदी के सकारात्मक परिणामों को देखा जा सकता है. यह महत्वपूर्ण है कि न्यायालय ने संवैधानिक निर्देशों का हवाला दिया है और कहा है कि राजस्व के नुकसान का तर्क वैध नहीं हो सकता है.
भले ही यह फैसला राजमार्गों और सड़क दुर्घटनाओं के संदर्भ में आया है, लेकिन इसकी मूल भावना पर सरकारों और समाज को गंभीरता से समझना चाहिए. न्यायालय ने कहा है कि राजमार्गों से यात्रा करनेवालों से वसूले गये राजस्व पर सरकार की निर्भरता को उचित नहीं माना जा सकता है तथा अगर सरकार का उद्देश्य नशे में वाहन चलाने को रोकना है, तो फिर उन्हें शराब पीने के लिए उकसाना कतई ठीक नहीं है. शराब से होनेवाला नुकसान उससे हासिल राजस्व की तुलना में कहीं अधिक है. हिंसा, अपराध, आर्थिक तंगी, पारिवारिक तबाही जैसी परेशानियां देश के भविष्य को बर्बाद कर रही हैं.
जैसे शराब सड़क हादसों का बड़ा कारण है, वैसे ही वह समाज और परिवार के अंदर भी हादसों की बड़ी वजह भी है. कमाई के लालच ने प्रशासनिक और व्यावसायिक भ्रष्टाचार को भी बढ़ाया है. उम्मीद है कि न्यायालय के इस फैसले से शराबबंदी की उस बहस को त्वरा और ऊर्जा मिलेगी, जो नीतीश सरकार के फैसले से शुरू हुई है और जिसके असर से कुछ राज्यों में शराब बिक्री के कायदों में बदलाव भी हुआ है. शराब और अन्य तरह के नुकसानदेह नशीले पदार्थों के विरुद्ध सरकारों को ठोस कदम उठाने के साथ जागरूकता बढ़ाने की दिशा में भी पहल करनी चाहिए. ऐसे प्रयासों में समाज के प्रबुद्ध तबके को भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए.

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