झारखंड में पिछले दिनों दुष्कर्म की दो जघन्य वारदातें हुईं. राजधानी रांची में बच्ची से दुष्कर्म करनेवाले को बच्ची की मां ने पीट-पीटकर मार डाला. वहीं गोमियो में नाबालिग से गैंग रेप का प्रयास किया गया और विरोध करने पर उसे धारदार हथियार से वार कर गंभीर रूप से जख्मी कर दिया गया.
सूचना दिये जाने के बाद भी गोमियो पुलिस की ओर से कार्रवाई में शिथिलता कई सवाल खड़े कर रही है. सवाल यह भी है कि क्या पुलिस पर से उठते विश्वास के कारण ही रांची में एक मां ने कानून अपने हाथ में ले लिया? देश-प्रदेश में दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ रही हैं. इन्हें रोकने के लिए सख्त कानून बनाये जा रहे हैं. लेकिन क्या वजह है कि पुलिस ऐसी घटनाओं के प्रति संवेदनशील नहीं हो रही है? पूरे देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बहस चल रही है, लेकिन शायद यह हमारी पुलिस के कानों तक नहीं पहुंच पा रही है.
महिलाओं और बच्चों पर जुल्म रोकने के प्रति झारखंड के प्रशासन से जुड़े लोग सचेत क्यों नहीं हैं? हाल में अदालतों ने भी ऐसे कई मामलों में संदेश देनेवाले फैसले सुनाये हैं. पुलिस व प्रशासन को न्यायालय की भावनाओं के अनुरूप अपनी सक्रियता बढ़ानी चाहिए. दरअसल, प्रशासन द्वारा संजीदा और त्वरित कार्रवाई नहीं किये जाने के चलते अपराधियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है. वहीं आम लोगों के मन में पुलिस की छवि खराब होती जा रही है और उनका प्रशासन पर भरोसा कम होता जा रहा है. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि लोग छोटी-मोटी घटनाओं के बाद भी आक्रोशित होकर सड़क जाम, आगजनी, पुलिस पर पथराव आदि जैसे कृत्यों में शामिल हो जाते हैं.
कई बार न्याय मांगने के लिए एकत्रित भीड़ के उद्वेलित हो जाने से प्रशासन द्वारा लाठीचार्ज या फायरिंग जैसी घटनाओं में जान-माल की क्षति हो जाती है. शासन व्यवस्था से लोगों का मोहभंग अराजकता को बढ़ावा दे सकता है. इसलिए सरकार और पुलिस व प्रशासन को अपनी साख बनाये रखने के लिए अपनी कार्यशैली में अपेक्षित सुधार करने की दरकार है. आम लोगों को समय पर न्याय दिलाना और अपराध को नियंत्रित करना आज पुलिस के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है. इस चुनौती पर पुलिस को खरा उतरना होगा, तभी झारखंड में अमन-चैन आयेगा.