राजमार्गों के विकास-विस्तार के लिए धन जुटाने के लिए एक नये मॉडल को सरकार ने मंजूरी दी है. आम तौर पर इसे टोल-ऑपरेट-ट्रांस्फर (टीओटी) कहा जाता है और भारत में पहली बार ऐसी पहल की जा रही है. राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण(एनएचएआइ) द्वारा संचालित 75 राजमार्गों पर टोल वसूलने का अधिकार अब एक निर्धारित शुल्क लेकर किसी अन्य दावेदार को दिया जा सकेगा. निविदा प्रक्रिया में विदेशी फंड भी हिस्सा ले सकेंगे.
फिलहाल इन राजमार्गों के टोल से प्राधिकरण को करीब 2,700 करोड़ प्राप्त होता है. जानकारों का मानना है कि नये मॉडल से आय अधिक होगी. प्राप्त शुल्क का इस्तेमाल नये राजमार्गों के निर्माण में किया जायेगा. विकसित संसाधन के व्यावसायिक उपयोग के जरिये नये संसाधन के निर्माण का यह मॉडल सराहनीय है. केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का चालू वित्त वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्य भी मॉडल की मंजूरी के पीछे एक बड़ी वजह मानी जा सकती है.
पिछले साल के अपने कामकाज के नतीजों से उत्साहित होकर चालू वित्तवर्ष के मंत्रालय ने 25,000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग का लक्ष्य निर्धारित किया. पिछले वित्त वर्ष की तुलना में यह ढाई गुना की वृद्धि है. निर्धारित लक्ष्य में तकरीबन 15,000 किमी लंबे राजमार्ग का विकास-विस्तार एनएचएआइ के जिम्मे है. जाहिर है, एनएचएआइ को नये मॉडल के अमल में आने से जो आमदनी होगी, उसे लक्ष्यपूर्ति में लगाया जा सकेगा. बहरहाल, परियोजनाओं के पूरा होने के लिए धन की जरूरत के साथ विभिन्न विभागों से मिलनेवाली मंजूरी की दरकार भी होती है.
उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार, राजमार्गों के विकास-विस्तार से संबंधित चालू वित्त वर्ष की केवल 18 फीसदी परियोजनाएं ही अब तक मंजूर की जा सकी हैं. इस साल अक्तूबर तक कुल 4,433 किमी की परियोजनाओं को संस्तुति मिली है और इसमें 3,591 किमी की लंबाई का मार्ग बनाया गया है.
शेष राजमार्ग परियोजनाओं को मंजूरी का इंतजार है, जिसके लिए भूमि-अधिग्रहण तथा वन एवं पर्यावरण संबंधी अनुमति जरूरी है. इन मामलों की मौजूदा रफ्तार के हिसाब से एक परियोजना को हरी झंडी मिलने में कम-से-कम डेढ़ साल का समय लगता है. नयी परियोजनाओं के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से लाये जा रहे इस मॉडल की सफलता के लिए यह जरूरी है कि परियोजनाओं का काम शुरू करने के लिए जमीन और पर्यावरण से जुड़ी अनुमति की प्रक्रिया भी तेज हो.