जब नयी-नवेली दुल्हन अपने पति के साथ पीहर आती है तो नये वातावरण और सर्वथा नये लोगों के बीच खुद को निरा असहज महसूस करती है. यूं तो जीवनसाथी पाने की खुशी, सुनहरे सपने, दांपत्य-सुख की कामना हिलोरे मारती रहती हैं, लेकिन अचानक विकसित नये संबंधों की जिम्मेवारी, नयी रीतियां, नये संस्कारों के साथ सामंजस्य बिठाने की चुनौती उसके आरंभिक दांपत्य-सुख-प्राप्ति में अवरोधक होती है.
एक संवेदनशील व जवाबदेह दुल्हन के लिए यह अक्षरश: सत्य है. अगर वह स्वार्थी, आत्मकेंद्रित व गैर जवाबदेह हो तो बात दीगर है. यहां ध्यातव्य है कि दुल्हन नये वातावरण में खुद को ढाल भी नहीं पाती है, अपने संबंधियों को सही ढंग से पहचान भी नहीं पाती है कि हर किसी की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चाहत उसे बेचारा बना देती है. कोई उस बेचारी की भावनाओं को शायद ही समझता हो.
दिल्ली के नये मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की स्थिति उस दुल्हन से इतर नहीं है. इस समय वे बेचारा भला आदमी सा प्रतीत होते हैं. अभी वे अपने प्रशासनिक तंत्र से पूरी तरह परिचित भी नहीं हो पाये हैं कि विभिन्न संगठनों व आम लोगों द्वारा अपनी-अपनी समस्याओं की फेहरिस्त पेश की जाने लगी है. तभी तो उन्हें यह कहने के लिए बाध्य होना पड़ा कि उन्हें कम से कम दस दिनों का समय दिया जाये, ताकि वे अपना तंत्र समझ सकें तथा उसे विकसित कर प्रभावी तरीके से जन समस्याओं का निराकरण कर सकें.
यह उनके नेक इरादों को प्रतिबिंबित करता है. वे झूठे दिलासों में विश्वास नहीं करते. यही सोच उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती है. उन पर अनावश्यक व असामयिक दवाब न बनाया जाये. अपनी तीनों आंखें खुली रखनेवाले इनसान को बेचारा न समङों.
योगेंद्र प्रसाद सिंह, बंशीडीह, चास