बचपन से अब तक हर वर्ष स्कूलों में बाल दिवस मनाते देखते आ रहे हैं, परन्तु अब लगता है मानो हमसे हमारा बचपन छिनता सा जा रहा है! हर कोई अपने बचपन के खुशनुमा पलों को याद करता है और उनमें खो जाना चाहता है़
बचपन सहज, चंचल, निश्छल स्वभाव, राग-द्वेष से परे, लोभ, संकोच से मुक्त, निर्भय और निर्मुक्त, चिंताओं से कोसों दूर, बेपरवाह जीवन है़ यह उनके शारीरिक और मानसिक विकास में मददगार भी होते हैं आज बच्चों के कंधों पर भारी बस्ता टंगा रहता है़
छोटी सी उम्र में ही इनको प्रतिस्पर्धा की दौड़ में शामिल कर दिया जाता है, दूसरों से बेहतर साबित करने की. खेल के नाम पर उन्हें वीडियोगेम/मोबाइल थमा िदया जा रहा है. इससे बच्चों में चिड़चिड़ापन व गुस्सैल प्रवृत्ति अधिक आ जाती है़ उन पर पढाई के दवाब के साथ कॉम्पीटिशन का दबाव कम उम्र में ही बड़ा व गंभीर बना देता है़ बचपन दोबारा लौटकर नहीं आता, कम से कम इस उम्र में तो आप उन्हें बचपन का पूरा लुत्फ उठाने दें, जो उनके लिए सबसे सुंदर तोहफा होगा़
हरिश्चन्द्र महतो, बेलपोस, चक्रधरपुर