प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पुराने जेरूसलम शहर स्थित अल अक्सा मसजिद की याद कम आ रही है, जो इस समय विवाद के घेरे में है. युद्ध से बुद्ध की बात करनेवाले मोदी के लिए इजराइल इस समय एक रोल मॉडल की तरह है, जो बाज दफा ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ किया करता है. मंगलवार को मंडी की सभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि इजराइल के बाद पहली बार हमारी सेना ने ऐसा पराक्रम कर दिखाया है. अब यह तय करना मुश्किल है कि इस तरह की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की प्रेरणा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिल रही है या इजराइल से. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते मोदी जी ने 2006 में तेल अबीब की यात्रा की थी.
इजराइल-भारत के बीच कूटनीतिक संबंधों के पच्चीस साल 29 जनवरी, 2017 को पूरे होंगे. शायद मोदी उस अवसर पर तेल अबीब जायें और यह कहें कि हमने इजराइल से प्रेरणा लेकर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कराया था.
मगर, इजराइल में इसे सर्जिकल स्ट्राइक नहीं कहते. ऐसे अभियान का नाम है- ‘टारगेट किलिंग’, जिसे हिब्रू में ‘सिकुल मेमुकद’ बोलते हैं. अमेरिका और यूरोप के देश भी इसे ‘टारगेट किलिंग’ ही कहते हैं. अमेरिका अंतरराष्ट्रीय कानून और अपराध न्यायालय की पेचीदगियों से बचने के लिए अक्सर टारगेट किलिंग को ऑन द रिकाॅर्ड नहीं दर्ज कराता. लेकिन यूएस नेवी सील द्वारा ओसामा बिन लादेन को मार गिराने की सूरत में अमेरिका ने उस ऑपरेशन को बाकायदा दुनिया के समक्ष स्वीकार किया था. उससे बहुत पहले सत्रह अमेरिकी सैनिकों को मारने का श्रेय लेनेवाले यमनी आतंकी कायद सलीम सिन्ना अल हरेथी का वध सीआइए और यूएस स्पेशल ऑपरेशन फोर्स ने ड्रोन हमले में किया था. इसे भी ऑन द रिकाॅर्ड बताया गया. मगर, उस तरह के ‘टारगेट किलिंग’ में, जहां आम नागरिक मारे जाते हैं, उसे आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया जाता. पाकिस्तान, यमन, सोमालिया में अमेरिका ने सर्वाधिक लक्ष्यभेदी वध किये हैं. द न्यू अमेरिका फाउंडेशन नामक संस्था ने स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के हवाले से 2004 से 2011 के बीच के आंकड़े इकठ्ठे किये और जानकारी दी कि उत्तरी पाकिस्तान में 26,034 लोग मारे गये, जिसमें आतंकियों से अधिक आम नागरिक थे. इन आंकड़ों पर यकीन इसलिए किया जा सकता है, क्योंकि अमेरिकी काउंटर टेररिज्म के एक वरिष्ठ अधिकारी ने 2008 से मई 2010 तक लगातार किये ‘टारगेट किलिंग’ में स्वीकार किया था कि इस अवधि में अमेरिकी ड्रोन हमले में 530 पाकिस्तानी मारे गये थे.
प्रधानमंत्री मोदी को ऐसे बयान से परहेज करना चाहिए कि इजराइल के बाद हमने ही पराक्रम दिखाया है. ऐसा वक्तव्य कहीं प्रहसन में परिवर्तित न हो जाये. दुनिया में बहुत सारे देश हैं, जिन्होंने ‘टारगेट किलिंग’ करायी है. बगल का नेपाल बहुत छोटा सा उदाहरण है, जब राणा काल से लेकर पंचायती व्यवस्था के दौर में सैकड़ों ‘टारगेट किलिंग’ सीमा पार भारत में राणा शासकों और राजा के स्पेशल कमांडो ने किये. उन दिनों सीमाई शहर रक्सौल से लेकर पटना, बनारस, कलकत्ता तक नेपाली दरबार के कमांडो दहशत फैलाते थे. 1965 में नेपाली कांग्रेस के नेता तेज बहादुर अमात्य की रक्सौल में गोली मार कर हत्या और उसके दो दशक बाद उसी शहर में तराई आंदोलन के नेता वैद्यनाथ गुप्ता, उनके भतीजे दीपक की नेपाली कमांडो द्वारा मार दिये जाने पर भारतीय अधिकारी आंख मूंद गये थे. पता नहीं, प्रधानमंत्री मोदी इतिहास के इस पन्ने से कितना वाकिफ हैं. मगर, नेपाल कभी भी इस तरह के ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ को लेकर सीना नहीं तानता था.
यह सच है कि ‘टारगेट किलिंग’ के मामले में इजराइल पूरी दुनिया में सबसे आक्रामक देश माना जाता है. इजराइल ने सबसे पहला ‘टारगेट किलिंग’ 13 जुलाई, 1956 को किया था. उस दिन गाजा पट्टी में मिस्र की सेना का लेफ्टिनेंट मुस्तफा हफीज को इजराइल ने एक पार्सल बम भेज कर मरवाया था. इजराइली एनजीओ बीटी सलेम ने 2002 से मई 2008 तक ‘टारगेट किलिंग’ के जो आंकड़े दिये, उसके अनुसार, इस अवधि में इजराइली सुरक्षाबलों द्वारा 387 फिलस्तीनी मारे गये थे. मगर क्या ये सभी 387 लोग अतिवादी थे? लेकिन, ‘गेहूं के साथ घुन भी पिसा जाता है’, इस तरह के कुतर्क सामने रख दिये जाते हैं.
क्या हमें इजराइल का ‘अल्ट्रा राष्ट्रवाद’ भाने लगा है? 2001 से पहले इजराइल न्यायेत्तर हत्याएं कराने में बढ़-चढ़ कर आगे था. तत्कालीन प्रधानमंत्री अरियल शेरोन और उनके बाद एहुद ओलमर्ट ने ‘टारगेट किलिंग’ को जवाबदेह बनाने की कोशिश की थी. मगर, नेतन्याहू आये तो फिर आक्रामक हो गये. 10 साल 220 दिन सत्ता में बने रहनेवाले इजराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू इस समय ‘अल्ट्रा राष्ट्रवाद’ के सबसे बड़े आइकॉन हैं. 1996 से 99 और 2009 से अब तक चार टर्म प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल करते रहने के कारण नेतन्याहू ने ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ को अपनी रणनीति का सबसे बड़ा हिस्सा बनाया है. क्या युद्ध से बुद्ध की बात करनेवाले प्रधानमंत्री मोदी, बिन्यामिन नेतन्याहू में अपना अक्स ढूंढ रहे हैं?
पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
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