इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के देर से पूरा होने और उनके खर्च में बढ़ोतरी से न सिर्फ विकास की गति मद्धिम पड़ती है, बल्कि समृद्धि की आकांक्षाओं तथा संभावनाओं पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. सांख्यिकी मंत्रालय ने इस वर्ष अप्रैल में ऊर्जा, रेल और सड़क से संबंधित 286 बड़ी परियोजनाओं का आकलन कर बताया है कि 101 परियोजनाओं के पूरा होने में विलंब के कारण उनका खर्च 1.29 करोड़ से अधिक बढ़ गया है.
ये सभी परियोजनाएं एक हजार करोड़ या उससे अधिक बजट की हैं. इन सभी 286 परियोजनाओं के पूरा होने का कुल खर्च 9.40 लाख करोड़ निर्धारित था जो अब बढ़ कर तकरीबन 10.70 लाख करोड़ हो गया है. इनमें से दो परियोजनाएं जहां समय से पहले पूरी कर ली गयी हैं, वहीं 54 परियोजनाएं तय समय से पूर्णता की ओर बढ़ रही हैं. लेकिन इतने भर से संतोष करने का कोई कारण नहीं है. इन 286 परियोजनाओं में से 123 का काम विलंब से चल रहा है, तो 101 परियोजनाओं का खर्च बहुत बढ़ गया है. जो परियोजनाएं देर से चल रही हैं और जिनका खर्च भी बढ़ा है, उनकी संख्या 41 है. देरी से चल रही परियोजनाओं में 40 परियोजनाएं एक महीने से दो साल तक विलंब से हैं जिनकी भरपाई करना बहुत मुश्किल नहीं है, पर 83 परियोजनाएं दो साल से लेकर पांच साल से अधिक की देरी से चल रही हैं.
सकल घरेलू उत्पादन में आठ फीसदी वृद्धि दर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए इन परियोजनाओं में तेजी की जरूरत है, क्योंकि ऊर्जा और परिवहन की बेहतरी के बिना औद्योगिक और वाणिज्यिक विकास संभव नहीं है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी माना है कि ‘विजन 2020’ के निर्धारित लक्ष्य को पूरा करना संभव नहीं है और हमें 2030 तक इन्हें हासिल करने के लिए ठोस और भरोसेमंद कदम उठाना होगा. विभिन्न कारणों से कई अन्य वाणिज्यिक परियोजनाएं भी लंबित हैं. ऐसे में रोजगार, उत्पादन और रहन-सहन की बेहतरी में बाधा पड़ती है. उम्मीद है कि इन मुश्किलों से पूरी तरह अवगत सरकार परियोजनाओं को निर्धारित समय और बजट में पूरा करने की दिशा में गंभीरता से प्रयासरत होगी.