यह भारतीय राजनीति की विडंबना ही है कि इस लोकतंत्र में कुछ राजनीतिक दलों को छोड़कर अधिकांश का सर्वोच्च पद पूरी तरह से परिवार विशेष के लिए आरक्षित है, जो आनुवंशिक भी है.
जिन दलों में सर्वोच्च पद आरक्षित नहीं भी हैं, वो भी परिवारवादी मानसिकता के संक्रमण से मुक्ति का दावा नहीं कर सकते़ हाल ही में झारखंड विधानसभा उपचुनाव ने वंशवाद को और मजबूती प्रदान की़ झारखंड में तो स्थिति और बदतर तब हो जाती है, जब किसी सांसद, विधायक या मंत्री के घरवालों का ट्रांसफर, पोस्टिंग और प्रोजेक्ट संबंधी अनुशंसा में सीधा दखल होता है. कमोबेश यही स्थिति देश भर में व्याप्त है, जो इस लोकतंत्र को परिवार तंत्र बनाने की राह पर है.
ऋषिकेश दुबे, पलामू