।। प्रो आनंद कुमार।।
(आम आदमी पार्टी से जुड़े हैं)
किसी भी राजनीतिक दल के निर्माण में बड़े सपनों, बड़े आंदोलनों, बड़े संगठन और बड़े नेतृत्व की जरूरत होती है. यह बड़ापन एकाएक या खुद हाजिर नहीं होता, बल्कि एक मकान के निर्माण की तरह बुनियाद से लेकर छत तक एक-एक ईंट रखी जाती है. आम आदमी पार्टी के बारे में कहा जा रहा है कि इसने एक वैकल्पिक राजनीति की दिशा में कुछ छोटे कदम दिल्ली विधानसभा के चुनाव के दौरान उठाने में सफलता पायी है, क्योंकि इसने जनसाधारण के बीच से उम्मीदवारों का चयन किया. दिल्ली में कुर्सी की जोड़तोड़ में पड़े बिना, एक पखवारे से ज्यादा से न सिर्फ आप की सरकार चल रही है, बल्कि यह पार्टी पूरे देश में जनता के वोटों की भागीदारी के साथ आम चुनाव में हिस्सा लेने का ऐलान भी कर चुकी है.
स्वराज की अवधारणा के तीन पहलू हैं. राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक. पहला पहलू, राजनीतिक संदर्भ में स्वराज का अर्थ सहभागी लोकतंत्र है, जिसमें मोहल्ला सभा, ग्राम सभा और पंचायत सभा की बुनियाद पर शासन की बात मानी गयी है. इस दिशा में जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक द्वारा कुछ कदम उठाये जा चुके हैं, लेकिन उनके अधूरेपन को दूर करने के लिए 21वीं शताब्दी के सच को ध्यान में रखते हुए तत्काल नये परिवर्तनों की जरूरत है. दूसरा पहलू, स्वराज का सामाजिक संदर्भ है, जिसमें स्त्री-पुरुष समानता से शुरू होकर जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के आधार पर विभिन्न प्रकार की पराधीनता और अन्यायों का सामना कर रही जमातों के लिए राज्य, समुदाय और बाजार की मदद से कई नये कदमों का विवरण आप ने बनाया है. इनमें कुछ तो दिल्ली विधानसभा के चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया गया, जबकि पूरी तसवीर लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र के साथ पेश की जा रही है.
इसमें भारतीय संविधान के सामाजिक न्याय संबंधी कदमों, विशेष तौर पर दलितों, आदिवासियों, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण और अल्पसंख्यकों के लिए विशेष आश्वासनों को और भी मजबूत बनाने का काम शामिल है. महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रयोगों को पंचायती सरकार से ऊपर केंद्र सरकार तक ले जाने की तैयारी है. तीसरा पहलू, आर्थिक स्वराज है, जिसमें कृषि, पशुपालन, कुटीर उद्योगों से लेकर बड़े उद्योगों और सूचना तकनीक तक की पूरी व्यवस्था को फिर से सजाने-संवारने पर बल है. इसमें बाबूशाही, नेताशाही और बिचौलिया पूंजीवाद, तीनों के लिए पैदा किये गये दोषों का प्रभावशाली निराकरण अनिवार्य है. आर्थिक स्वराज में कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था से मुक्ति, देश-विदेश में जमा कालेधन की वापसी और ईमानदार उद्योगपतियों-व्यापारियों को भरपूर प्रोत्साहन, तीनों शामिल हैं.
देश को स्वराज का सपना पहली बार आप ने नहीं दिखाया है. इसका शुभारंभ दादा भाई नौरोजी के उस महान अभियान से हुआ, जिसमें भारत की बेपनाह गरीबी को विदेशी राज से जोड़ कर समझा गया. फिर तिलक ने स्वराज को हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार बताने की सिंहगजर्ना की. गांधीजी ने अपने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रयोगों के आधार पर हिंदस्वराज का बिगुल 1909 में बजाया. नेताजी सुभाष चंद्र बोस और नेहरू के नेतृत्व में 1930-31 तक आते-आते भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का संकल्प अपनाया. आजादी के 67 वर्षो बाद स्वराज की नयी परिभाषा और नये विस्तार की जरूरत है.
इधर, आप की नयी राजनीतिक पहल के सिलसिले में सत्ता के कुछ विकारों को लेकर चिंता भी प्रकट की जा रही है. सत्ता का अहंकार एक व्यापक दोष है. इसके लिए जनतंत्र में विरोधी दलों, मीडिया व नागरिक समाज को चौकीदारी का काम दिया गया है. यह अच्छी बात है कि कुल जमा दो हफ्ते की सरकार होने के बावजूद आप द्वारा विकसित की जा रही सत्ता संस्कृति के हर कदम की चौतरफा जांच की जा रही है. काश! हमारे विरोधी दल, मीडिया और नागरिक समाज ने ऐसी ही सतर्कता अब तक की सभी सत्ताधारी पार्टियों के बारे में दिखायी होती तो आज देश को भ्रष्टाचार की चौतरफा दरुगध का सामना नहीं करना पड़ता.
इस कड़ी में तीन बातें गौरतलब हैं. पहली, इस समय जरूरी है कि आप को कठिन और कड़ी एकता की कसौटी पर कसा जाये. यह भी जरूरी है कि साध्य और साधन की पवित्रता का इनका वायदा इन्हें हर सुबह याद कराया जाये. आप द्वारा अपने घोषणापत्र के मुताबिक कुछ शुरुआती कदम उठाये जा चुके हैं. इससे यह तो स्पष्ट है कि आप का घोषणापत्र एक अनिवार्य आधार बन चुका है, वरना पिछले कई दशकों की किसी भी सरकार के घोषणापत्र को इतनी गंभीरता से मूल्यांकन का पैमाना बनाने का काम नहीं हुआ था. यह परिवर्तन 2014 के आम चुनाव में प्रस्तुत किये जानेवाले सभी घोषणापत्रों के लिए एक शुभ समाचार है.
दूसरी, आप सरकार अपने आलोचकों के प्रति सम्मानपूर्ण सजगता प्रदर्शित कर रही है. इससे लोकतंत्र के दोनों पहिये, यानी सत्ताधारी और विपक्षी दल का एक साथ व्यवस्था संचालन में योगदान मुमकिन हो रहा है, वरना प्रदेशों में सत्ताधारी दल विरोधी दलों के प्रति प्राय: उदासीन पाये जा रहे हैं. तीसरी, आप के मुख्यमंत्री को अपनी भूलों के लिए जनता से अविलंब भूल सूधार का अवसर देने की प्रार्थना करने में संकोच नहीं दिख रहा है. बहुप्रचारित जनता दरबार के एक अराजक भीड़ में बदल जाने के 24 घंटे के अंदर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस जहांगीरी इंतजाम को गैरजरूरी घोषित कर नागरिक और शासन के बीच संवाद के लिए तकनीकी इस्तेमाल का सूझ-बूझ भरा फैसला किया.
कुछ सवाल आम चुनाव के लिए आप द्वारा अपनायी प्रक्रिया को लेकर उठ रहे हैं. इसमें कई हजार लोगों ने आप के सिद्धांतों-कार्यक्रमों पर ध्यान दिये बिना विभिन्न सीटों से आवेदन कर दिया है. यह वैचारिक विविधता सुधीजनों के मन में सैद्धांतिक अवसरवादिता की आशंका पैदा कर रही है, लेकिन इस बारे में अभी कोई फैसला देना उचित नहीं होगा, क्योंकि उम्मीदवारों की सूची आनी बाकी है. अगर दिल्ली विधानसभा चुनाव में पेश किये गये उम्मीदवार कोई संकेत माने जा सकते हैं तो इतना भरोसा करना चाहिए कि आप का चयनमंडल अपने उम्मीदवारों को पेश करते समय चरित्र, शुचिता, समाजसेवा, सादगी और सामाजिक सद्भाव से जुड़े लोगों को ही प्राथमिकता देगा. वैसे, अगर चुनावी चक्रव्यूह को तोड़ने के आवेग में यह पार्टी भी अन्य दलों की तरह चुनाव जितानेवाले उम्मीदवारों को गले लगाने को आतुर हुई तो चुनाव तो जीते जायेंगे, लेकिन तय मानिये कि आप का आकर्षण खत्म हो जायेगा.