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भारत-अमेरिका रिश्तों में बचकाना खेल

।। प्रमोद जोशी ।। वरिष्ठ पत्रकार मीडिया के पास जो विवरण है, वह देवयानी के पिता उत्तम खोब्रागड़े ने उपलब्ध कराया है. भारत ने अमेरिकी दूतावास के खिलाफ बदले की जो कार्रवाई की, वह जनमत के दबाव में थी, कानूनी खामियों के कारण नहीं. यदि यह काम उचित था तो हमने इसे पहले क्यों नहीं […]

।। प्रमोद जोशी ।।

वरिष्ठ पत्रकार

मीडिया के पास जो विवरण है, वह देवयानी के पिता उत्तम खोब्रागड़े ने उपलब्ध कराया है. भारत ने अमेरिकी दूतावास के खिलाफ बदले की जो कार्रवाई की, वह जनमत के दबाव में थी, कानूनी खामियों के कारण नहीं. यदि यह काम उचित था तो हमने इसे पहले क्यों नहीं किया?

देवयानी खोब्रागड़े के मामले को लेकर हमारे मीडिया में जो उत्तेजक माहौल बना, उसकी जरूरत नहीं थी. इसे आसानी से सुलझाया जा सकता था. इसे भारत-अमेरिका रिश्तों के बनने या बिगड़ने का कारण मान लिया जाना निहायत नासमझी होगी. दो देशों के रिश्ते इस किस्म की बातों से बनते-बिगड़ते नहीं है.

भारत में इस साल चुनाव होने हैं और यह मामला बेवजह गले की हड्डी बन सकता है. सच यह है कि यह एक बीमारी का लक्षण मात्र है. असल बीमारी है संवेदनशील मसलों की अनदेखी. बेहतर होगा कि हम बीमारी को समझने की कोशिश करें. हर बात को राष्ट्रीय अपमान, पश्चिम के भारत विरोधी रवैये और भारत के दब्बूपन पर केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए.

देवयानी खोब्रागड़े भारत वापस आ गयी हैं, पर उनके पति और बच्चे अमेरिका में हैं, जिन्हें अमेरिकी नागरिकता हासिल है. हमने बेशक एक अमेरिकी राजनयिक को बदले में वापस भेज दिया, पर देवयानी की दिक्कतें कम नहीं हुई हैं. वे अब अमेरिका नहीं जा सकतीं.

इसके कारण उन 14 अन्य घरेलू कर्मचारियों के मामले अब उठ रहे हैं, जो अमेरिका में भारतीय अधिकारियों के घरों में काम कर रहीं हैं. भारत सरकार उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की बात सोच रही है. क्या यह केवल अमेरिका के लिए नियम बनेगा? और क्या यह जरूरी है कि भारत सरकार अपनी विदेश सेवा के अधिकारियों के लिए घरेलू नौकर की व्यवस्था भी करे? लगता है यह दो देशों का नहीं उनकी विदेश सेवाओं के अफसरों के बीच का विवाद बन गया है.

खास बात यह है कि इस मामले को विवाद के रूप में उभरने के पहले दोनों देशों की अदालतों में यह किसी न किसी रूप से उठ चुका था. अदालत में मामला जाने के बाद उसे बैकरूम बातचीत से नहीं सुलझाया जा सकता.

इस विवाद के कारण दोनों देशों के रिश्तों पर असर पड़ा है या नहीं, पर अमेरिकी ऊर्जा मंत्री अर्नेस्ट मोनिज ने इस महीने होनेवाली अपनी भारत यात्रा अचानक रद कर दी है.

क्या यह भारत का अपमान और अमेरिकी साजिश है? अगर साजिश है तो उसका लक्ष्य क्या है? हमें अपमानित करके उन्हें क्या हासिल होगा? वे घरेलू सेवकों के जिन अधिकारों की बात कर रहे हैं, क्या वे उन्हें लेकर वास्तव में सख्त हैं? अमेरिका में बड़े से बड़े लोग अपने काम अपने हाथ से करते हैं, वहां भारत के डिप्लोमेट घर में पूर्णकालिक सेविका सस्ते में कैसे रख लेते हैं? भारत सरकार के रुख के पीछे क्या डिप्लोमेट लॉबी का हाथ है?

इस मामले में हो रहे विमर्श में देवयानी की नौकरानी संगीता रिचर्ड के बारे में बात हो ही नहीं रही है. वह भी तो भारतीय नागरिक है. उसका क्या कहना है और वह कहां है?

मीडिया के पास जो विवरण है, वह देवयानी के पिता पूर्व ब्यूरोक्रेट उत्तम खोब्रागड़े ने उपलब्ध कराया है.

भारत सरकार ने अमेरिकी दूतावास के खिलाफ बदले की जो कार्रवाई की वह जनमत के दबाव में थी, कानूनी खामियों के कारण नहीं. यह काम उचित था तो हमने पहले क्यों नहीं किया? अमेरिकी दूतावास से चल रही व्यावसायिक गतिविधियों, उसके स्कूल में काम करनेवाले कर्मचारियों की सेवा शर्तो के बारे में जो भी किया जा रहा है, वह ठीक है. पर यह सब पहले क्यों गलत नहीं था? यह दोनों देशों के राजनयिकों को मिलनेवाली सुविधाओं और विशेषाधिकारों का मामला है, तो इसे राजनयिक रिश्तों को बिगाड़नेवाला मामला क्यों माना जा रहा है?

देवयानी पर मूल आरोप वीजा फ्रॉड का है. अभियोजन पक्ष के अनुसार, न्यूयॉर्क के भारतीय मिशन में काम करते हुए उन्होंने अपने घर में काम करनेवाली सेविका के बारे में जो सूचनाएं दी थीं, वे गलत थीं. इन्हें लेकर उनकी सेविका ने शिकायत की और अमेरिकी सरकार ने कार्रवाई की.

हमारे देश में जो विरोध हो रहा है, वह इस बात को लेकर है कि एक राजनयिक को प्राप्त विशेष सुविधाओं का उल्लंघन किया गया है. राजनयिक सुविधाएं देने का उद्देश्य अधिकारी को अपने राजनयिक कार्यो को संपन्न करने में आनेवाली दिक्कतों से बचाना है. क्या यह मामला किसी राजनयिक कर्म से जुड़ा हुआ है?

थोड़ी देर के लिए हम इटली के नौसैनिकों पर चल रहे मुकदमे के बारे में सोचें. इटली की सरकार उन नौसैनिकों के लिए विशेष सुविधा की मांग की थी. हमने उन सुविधाओं को देना मंजूर नहीं किया.

देवयानी की गिरफ्तारी के ठीक पहले संगीता के पति और बच्चों को अमेरिकी वीजा देकर अमेरिका ले जाने का मामला साजिश की संभावना को जन्म देता है. अमेरिका के सरकारी वकील प्रीत भरारा के अनुसार, उन्हें भारत में गिरफ्तार करने की तैयारी की जा रही थी. संगीता के पति को टी वीजा पर अमेरिका ले जाया गया है. यानी कि वहां उच्च स्तर पर सहमति थी.

भारत सरकार की तीखी प्रतिक्रिया के पीछे यह बड़ा कारण समझ में आता है. पर क्या भारत सरकार ने संगीता रिचर्ड के पक्ष को जानने की कोशिश की? वह भी तो भारतीय नागरिक है. भरारा के अनुसार उसे चुप कराने और भारत लौटने पर बाध्य करने के लिए उसके खिलाफ भारत में कानूनी कार्यवाही शुरू की गयी है. संगीता की वकील का कहना है कि मामले में ध्यान उनकी मुवक्किल के खिलाफ हुए अपराधों से हट कर राजनयिक पर केंद्रित होना निराशाजनक है.

संगीता रिचर्ड नवंबर, 2012 में देवयानी के यहां काम करने आयी. लगता है कि एक-दो महीने के भीतर ही उसके कांट्रैक्ट का विवाद शुरू हो गया था. देवयानी का कहना है कि संगीता अमेरिकी वीजा दिलाने और 10,000 डॉलर की मांग कर रही थी. संगीता का पक्ष अभी सामने नहीं आया है.

यह मामला जून से चल रहा है. संभव है संगीता को किसी ने भड़काया हो. पर यह सच है कि उसने अमेरिकी न्याय व्यवस्था से गुहार की थी. 23 जून से वह लापता थी. देवयानी ने जब उसके लापता होने की जानकारी न्यूयॉर्क स्थित विदेशी मिशन विभाग को दी थी, उसके पहले ही नौकरानी ने शिकायत कर दी थी.

देवयानी के भारत वापस आ जाने के बावजूद उनके खिलाफ अमेरिका में चल रहा मुकदमा बंद नहीं होगा. उसे बंद करने की प्रक्रिया भी है, तो उसमें दोनों पक्षों की सहमति की जरूरत होगी और देवयानी को अपराध स्वीकार करना होगा. क्या वे इसके लिए तैयार होंगी? क्या अंतत: इस मामले में मनमोहन सिंह और बराक ओबामा को हस्तक्षेप करना होगा? इसे इस हद तक बिगड़ने देने का दोष उन लोगों पर है, जिन्हें रिश्ते बनाने की जिम्मेवारी दी गयी है. दोनों देशों के विदेश विभागों में कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है.

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