।। सत्य प्रकाश चौधरी ।।
(प्रभात खबर, रांची)
पप्पू पनवाड़ी बरसों से बेनाम दुकान चला रहे थे. उनकी दुकान का कोई नाम भले न रहा हो, पर उनके पान का बड़ा नाम है. दरअसल, पप्पू भाई का मानना था कि नाम नहीं, काम पर जोर होना चाहिए. लेकिन अब उनकी मान्यता बदलती लग रही है, क्योंकि आज उनकी दुकान पर बड़ा सा बोर्ड टांगा जा रहा है, जिस पर लिखा है- ‘आप’ की दुकान. बोर्ड के कोने पर मुन्ना पेंटर के दस्तखत भी हैं.
उसी मुन्ना के, जो उन्हें न जाने कितनी बार दुकान पर बोर्ड टांगने की सलाह देकर डांट खा चुका था. वैसे तो मुन्ना पेंटर मुफ्त की सलाह देने के लिए खासे बदनाम हैं, पर इस सलाह में उनका क्या स्वार्थ था, यह समझने के लिए ‘आम आदमी’ होना भी काफी है. पप्पू भाई के ख्याल में तब्दीली क्यों और कैसे आयी, इसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं. बड़े बुद्धिजीवी इसे भूमंडलीकरण, बाजारवाद, व्यक्तिवाद, नव-उदारवाद.. और न जाने किस-किस वाद की परिघटना का इस मामूली से चौराहे पर प्रगटीकरण बता रहे हैं. वे इसे लोकल और ग्लोबल के बीच बन चुका अदृश्य पुल बता रहे हैं. वहीं, दोयम दरजे के बुद्धिजीवी इसमें मार्केटिंग, ब्रांडिंग के जमाने में टिके रहने का सूत्र तलाश रहे हैं. लेकिन, श्रमजीवी जो अमूमन बिना टोपीवाला आम आदमी होता है, इसे नितांत गैर-बौद्धिक कार्रवाई और भेड़चाल का नतीजा मान रहे हैं.
ऐसे ही एक श्रमजीवी ने बताया कि पप्पू को बोर्ड टांगने के कीड़े ने उस वक्त काटा, जब उसकी दुकान के ठीक सामने एक मेज पर चलनेवाली चाय की दुकान का नामकरण संस्कार पूरे तामझाम के साथ हुआ- नमो टी स्टॉल. चूंकि यह दुकान बिना दरो-दीवार की थी, इसलिए मेज के ठीक पीछे स्थित हनुमान मंदिर की दीवार पर नमो नामधारी बोर्ड टांगा गया. वैसे तो यह विषयांतर होगा, लेकिन बता दें कि दो-तीन दशक पहले दीवार पर यह बोर्ड टांगना संभव नहीं हो पाता, क्योंकि दीवार चाय की मेज से काफी दूर थी. पर, देश में एक रथयात्र निकली और मंदिर निर्जीव से सजीव हो उठा. इसने अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया और कुछ ही सालों पहले इसकी दीवार बिल्कुल मेज के पास तक पहुंच गयी.
अब मेज और दीवार के बीच सिर्फ इतना फासला है कि बड़ी मुश्किल से बीच में राजू चायवाला खड़ा हो पाता है. राजू को यह डर सता रहा था कि मंदिर ऐसे ही बढ़ता रहा, तो एक दिन उसकी मेज की जगह भी घेर लेगा और वह शब्दश: सड़क पर आ जायेगा. लेकिन जब उसे पता चला कि एक चायवाला प्रधानमंत्री पद का दावेदार हो गया है, तो उसे ‘नमो टी स्टॉल’ का बोर्ड अपनी दुकान के लिए सुरक्षा कवच प्रतीत हुआ. ‘नमो’ बोर्ड की ताकत देख पप्पू भाई ने भी बोर्ड बनवाने का फैसला कर लिया, क्योंकि वह भी कई बार नगर निगम वालों को घूस देकर ही अपनी दुकान बचा पाये थे. बस फर्क यह है कि पप्पू ने ‘नमो’ की जगह ‘आप’ के चमत्कार को नमस्कार किया है.