बिहार में शराबबंदी को लेकर तैयार किये गये रोड मैप से उम्मीद बनती है कि सरकार अपनी घोषणा को पूरी सख्ती से जमीन पर उतारना चाहती है. इस संदर्भ में दो बातों का जिक्र जरूरी है. पहली, सरकार शराबबंदी के लिए कानूनी प्रावधानों को सख्त करने जा रही है.
दूसरी, सामाजिक स्तर पर इसके लिए जागरूकता बढ़ायी जा रही है. एक अप्रैल से देसी और मसालेदार शराब की बिक्री पर पाबंदी लगनेवाली है. इसके लिए सरकार जो प्रावधान करने जा रही है, वे काफी कड़े हैं. जहरीली शराब से होनेवाली मौतों पर मृत्युदंड का प्रावधान किया जा रहा है. इसमें उम्रकैद और सात साल की कैद जैसे प्रावधान भी शामिल किये जा रहे हैं.
अवैध शराब के निर्माण और उसे बाजार तक पहुंचाने की कड़ी में जो भी शामिल होंगे, उन पर ये कानूनी प्रावधान लागू होंगे. निश्चय ही सरकार को इस बात का अंदेशा है कि शराब पर जब रोक लगेगी, तब इसके अवैध निर्माण के धंधेबाज सक्रिय हो सकते हैं. इस आशंका के मद्देनजर ही कानूनी प्रावधानों को ऐसा बनाया जा रहा है, ताकि उससे निकलने का कोई रास्ता न बचे. शराब पर रोक संबंधी ऐसा कठोर कानून संभवत: दूसरे किसी राज्य में नहीं है. बिहार इस मामले में पहला राज्य होगा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ठोक-ठेठा कर इस दिशा में काम कर रहे हैं.
विधानसभा चुनाव के पहले जब उन्होंने शराबबंदी की घोषणा की थी, तब कई लोगों ने इस पर संदेह जताया था. मगर सरकार ने शराब से मिलनेवाले टैक्स की भरपाई का रास्ता निकाला. अब उसे जमीन पर उतारने की दिशा में सभी जिलों को सील करने की तैयारी है. रेलवे के साथ भी राज्य सरकार ने बातचीत की है ताकि ट्रेनों से शराब को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने की गतिविधियां न हों. बिहार और झारखंड के पुलिस अधिकारियों ने भी इसके लिए बैठक की है.
बैठक में इस रणनीति पर चर्चा की गयी कि दोनों राज्यों की सीमा पर शराब के धंधेबाजों के खिलाफ साझा अभियान चलाया जायेगा. इसमें दो राय नहीं कि दोनों राज्यों के बीच अगर बेहतर समन्वय बने, तो अवैध शराब पर बहुत हद तक अंकुश लगेगा. राज्य सरकार आश्वस्त होना चाहती है कि राज्य में शराबबंदी लागू होने को लेकर कोई भी कोना कमजोर न रहे.