शहरी विकास मंत्रालय ने साफ-सफाई के मानदंडों के आधार पर देश के 73 शहरों की सूची जारी की है. इसमें मैसूर, चंडीगढ़ और तिरुचिरापल्ली जहां शीर्ष पर हैं, वहीं धनबाद, आसनसोल और इटानगर सबसे निचले पायदान पर. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में महत्वाकांक्षी ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत की थी. इसके अंतर्गत महात्मा गांधी के 150वें जयंती वर्ष 2019 तक संपूर्ण भारत को साफ-सुथरा बनाने का लक्ष्य है. इस अभियान की घोषणा से पूर्व स्वच्छता के मानदंडों पर देश के 476 शहरों की एक सूची जारी हुई थी.
तब यह उम्मीद जगी थी कि इस आकलन को ध्यान में रख कर विभिन्न शहर अपनी-अपनी हालत सुधारने की कोशिश करेंगे. इस आशा के मद्देनजर परखें तो नयी सूची से मिली-जुली तस्वीर उभरती है. विशाखापट्टनम, सूरत और वृहत्त मुंबई जैसे औद्योगिक व घनी आबादी वाले शहर जहां साफ-सुथरे शहरों में शामिल हो गये हैं, वहीं धनबाद, जमशेदपुर, गाजियाबाद, पटना और आसनसोल जैसे शहरों में स्थिति खराब बनी हुई है.
विभिन्न शहरों की साफ-सफाई के स्तर और उसके स्थानीय कारणों को लेकर बहस की गुंजाइश हो सकती है, लेकिन अहम सवाल यह है कि हमारी नगरपालिकाएं, नगर निगम और सरकारें स्वच्छता को लेकर कितनी गंभीर हैं? और बतौर नागरिक हम अपने आस-पड़ोस को कूड़े-कचरे और गंदगी से मुक्त रखने के लिए किस हद तक प्रतिबद्ध हैं. इन सवालों के जवाब के आधार पर प्रशासनिक प्रबंधन और नागरिक कर्तव्यों की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है. नगर निकायों की लापरवाही से ज्यादातर शहरों में नियमित सफाई नहीं होती.
कचरे के निपटारे की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण अब हर शहर के आसपास कूड़े के पहाड़ नजर आने लगे हैं. लोग घरों का कचरा नालियों में डाल देते हैं, जिससे गंदे पानी का निकास अवरुद्ध होता है. इससे बारिश में गलियों-सड़कों पर बाढ़ का दृश्य उपस्थित हो जाता है. शहरों के अनियंत्रित और अनियोजित विस्तार से भी प्रशासनिक तंत्र चरमरा रहा है. इससे प्रदूषण बढ़ रहा है. यह स्थिति आम जनजीवन के लिए घातक है.
यह शिकायत भी आम हो चली है कि शहरों के भूमिगत जल और पेयजल में गंदे नालों का पानी मिल जाता है. ऐसे में जरूरी है कि शहरों की सफाई के लिए ठोस कार्य-योजना बने और गंदे शहर साफ-सुथरे शहरों के कामकाज से सबक लें. यह ठीक है कि स्वच्छ शहरों को सरकारी प्रोत्साहन मिले, लेकिन गंदे शहरों पर भी विशेष ध्यान देना होगा. इन प्रयासों में सरकार और समाज, दोनों को एक-दूसरे का पूरक बन कर काम करना होगा.