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चुनौती बड़ी है

ऐतिहासिक गांधी मैदान उम्मीदों की नयी सरकार का गवाह बना. नीतीश कुमार ने 28 मंत्रियों के साथ पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. नीतीश 2005 से ही राज्य की सरकार चला रहे हैं. इस चुनाव में लोगों ने उन्हें 2020 तक सरकार चलाने का जनादेश दिया है. तो क्या उनके आगामी कार्यकाल को पिछली […]

ऐतिहासिक गांधी मैदान उम्मीदों की नयी सरकार का गवाह बना. नीतीश कुमार ने 28 मंत्रियों के साथ पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. नीतीश 2005 से ही राज्य की सरकार चला रहे हैं. इस चुनाव में लोगों ने उन्हें 2020 तक सरकार चलाने का जनादेश दिया है. तो क्या उनके आगामी कार्यकाल को पिछली सरकार की धारावाहिकता मानी जाये? इसका जवाब हां में भी हो सकता है और ना में भी.

लेकिन बात उम्मीदों को लेकर की जाये, तो यह पहले की तुलना में कहीं ज्यादा गहरी है. ताजा जनादेश में इसकी ध्वनि सुनी जा सकती है. एक दशक पहले राज्य की बागडोर संभालने के बाद नीतीश कुमार ने कई मोरचों पर एक साथ काम शुरू किया था. कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार पर वार, खेती-किसानी, संस्थानों को खड़ा करना, स्कूली छात्र-छात्राओं के लिए साइकिल योजना ने बिहार की नयी छवि गढ़ी. अर्थव्यवस्था में छलांग से देश-दुनिया में बिहार के बारे में धारणा बदली. लेकिन तब राजनीतिक परिदृश्य दूसरा था.

अब उसमें भारी फर्क आ चुका है और उसका आधार भी बदल गया है. विधानसभा चुनाव में भाजपा की पराजय से नीतीश कुमार की भूमिका अब राष्ट्रीय फलक पर देखी जा रही है. शपथ ग्रहण समारोह में आये नेशनल कान्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला की बातों से बहुत कुछ साफ होता है. अब्दुल्ला ने कहा कि अब नीतीश को केंद्रीय राजनीति में आने की तैयारी करनी चाहिए. जाहिर है कि बिहार में महागंठबंधन की कामयाबी से गैर भाजपा दलों के इकट्ठा होने की संभावनाएं बढ़ी है. अगर ऐसा होता है, तो नीतीश कुमार की इसमें बड़ी भूमिका होगी.

ऐसे में केंद्रीय राजनीति में भूमिका निभाना और बिहार में विकास को नयी मंजिल तक ले जाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा. दोनों भूमिकाओं में सामंजस्य बिठाना नीतीश कुमार की दक्षता पर निर्भर करेगा. हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री की हैसियत से उन्होंने एक प्रशासक के तौर पर अपनी यह दक्षता साबित की है. बिहार के ताजा जनादेश के मर्म से नीतीश अनभिज्ञ नहीं हैं. वह बुनियादी बदलाव के वास्ते अपने सात निश्चयों का हवाला देते हैं. चुनाव अभियान के दौरान ही उन्होंने इन निश्चयों को इस इरादे के साथ सार्वजनिक किया था कि इसे अगले पांच सालों में पूरा किया जायेगा. टीम नीतीश में पचास फीसदी सहयोगी पहली बार मंत्री बने हैं. उन्हें प्रशासनिक रूप से दक्ष बनाना और उनके जरिये जनता की उम्मीदों को पूरा करना बड़ा टास्क है. टीम नीतीश पर बिहार और बाहर के लोगों की उम्मीदें टिकी हैं.

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