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ब्रिक्स बैंक की कठिन राह
डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री ब्रिक्स देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका आते हैं. इन देशों ने न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना की है, जिसे ब्रिक्स बैंक कहा जाता है. इस बैंक को अधिक पूंजी चीन द्वारा उपलब्ध करायी जायेगी. इस बैंक द्वारा इन पांच देशों को बुनियादी संरचना के विकास के लिए […]
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
ब्रिक्स देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका आते हैं. इन देशों ने न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना की है, जिसे ब्रिक्स बैंक कहा जाता है. इस बैंक को अधिक पूंजी चीन द्वारा उपलब्ध करायी जायेगी. इस बैंक द्वारा इन पांच देशों को बुनियादी संरचना के विकास के लिए लोन दिये जायंेगे. इसकी स्थापना करने की जरूरत इसलिए पड़ी कि विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोश द्वारा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित को बढ़ाया जा रहा था.
ब्रिक्स बैंक का लक्ष्य होना चाहिए कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को छोड़ कर विकास का दूसरा माॅडल स्थापित करें. लेकिन ब्रिक्स बैंक के उपाध्यक्ष ने हाल में मुंबई में स्पष्ट किया है कि ब्रिक्स बैंक का उद्देश्य विश्व बैंक का विरोध करना नहीं, बल्कि मदद करना है.
अंगरेजों द्वारा लागू आइएएस व्यवस्था को स्वतंत्र भारत की सरकार ने अपनाया. गांधीजी द्वारा सुझाये गये गरीबोन्मुख विकास के माॅडल को त्याग कर इन अधिकारियों ने उसी सरकारवादी व्यवस्था को लागू किया, जिसके विरोध में हमने स्वतंत्रता आंदोलन छेड़ा था. अंगरेजी सरकार के स्थान पर भारतीय सरकार स्थापित हो गयी. आम आदमी के लिए कोई अंतर नहीं पड़ा. इसी प्रकार विश्व बैंक द्वारा स्थापित बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माॅडल को ब्रिक्स बैंक लागू करना चाहता है. गरीबोन्मुख माॅडल को त्याग कर ब्रिक्स बैंक द्वारा उसी बहुराष्ट्रीय कंपनी आधारित माॅडल को प्रवर्तित किया जायेगा, जिसके विरोध में इस बैंक की स्थापना की गयी है. केवल अधिकारी बदल गये हैं. विकास के मूल माॅडल में कोई बदलाव नहीं आया है.
ब्रिक्स बैंक का मुख्यालय चीन की वाणिज्यिक राजधानी शंाघाई में है. बैंक के प्रथम प्रमुख भारत के केवी कामथ को नियुक्त किया गया है. अब तक विश्व अर्थव्यवस्था का वित्तीय संचालन अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष तथा विश्व बैंक द्वारा किया जाता रहा है. इन दोनों संस्थाओं की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रेटन वुड्स नामक शहर में की गयी थी, इसलिए इन्हें ब्रेटन वुड्स संस्थाएं कहा जाता है. इन दोनों संस्थाओं में मुख्य शेयर धारक विकसित देश हैं और इन्हीं देशों के हितों को बढ़ाने के लिए ये संस्थाएं काम करती रही हैं. इन संस्थाओं द्वारा विकसित देशों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा दोहन के लिए खोला जाता रहा है. इनकी कार्यपद्धति का ज्वलंत उदाहरण हमारा 1991 का विदेशी मुद्रा संकट है.
इन संस्थाओं का उद्देश्य है कि विकासशील देशों को गरीब बनाये रखो. जिस प्रकार गरीब आदमी की परेशानी का लाभ उठा कर सूदखोर उसे जीवनपर्यंत ऋण के जाल में फंसा लेता है, उसी प्रकार इन संस्थाओं ने हमारे विदेशी मुद्रा के संकट का लाभ उठा कर हमें विदेशी कंपनियों के जाल में फंसा दिया. परिणाम है कि आज भी विश्व के संसाधनों की अधिकाधिक खपत विकसित देशों में हो रही है. वर्ल्ड वाच संस्था के अनुसार, उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में रहनेवाले 12 प्रतिशत लोगों द्वारा विश्व की 60 प्रतिशत खपत की जा रही है. दक्षिणी अफ्रिका एवं दक्षिणी एशिया में रहनेवाले 33 प्रतिशत लोगों द्वारा मात्र 3 प्रतिशत खपत की जा रही है.
ब्रेटन वुड्स संस्थाओं में सुधार लाना कठिन है, चूंकि ब्रिक्स देशों के पास इनके केवल 11 प्रतिशत शेयर हैं. ब्रिक्स बैंक के 100 प्रतिशत शेयर इन्हीं देशों के पास हैं, अतः यह वास्तव में विकासशील देशों के हित में काम कर सकते हैं. समस्या मानसिक दासता की है.
आज अधिकतर विकासशीलदेश अपने को अपंग और विकसित देशों को मसीहा मानते हैं. इनमें चीन भी शामिल है. चीन द्वारा मूल रूप से पश्चिमी देशों का अनुसरण किया जा रहा है. चीन के वित्त मंत्री ने ब्रिक्स बैंक के उद्घाटन के अवसर पर कहा था कि ब्रिक्स बैंक की भूमिका वर्तमान ब्रेटन वुड्स संस्थाओं के पूरक की होगी. जाहिर है, ब्रेटन वुड्स संस्थाओं के वर्चस्व को चीन ने स्वीकार कर लिया है. अतः चीन द्वारा इन संस्थाओं के विचार के विपरीत चलने की संभावना कम ही है.
केवी कामत के सामने कठिन चुनौती है कि ब्रेटन वुड्स संस्थाओं का अंधानुकरण करने के स्थान पर नयी दिशा बनायें. ऐसी विश्व रचना की ओर बढ़ें, जिसमें ब्रिक्स देशों में रहनेवाले 42 प्रतिशत लोगों द्वारा विश्व के 42 प्रतिशत प्राकृतिक संसाधनों की खपत की जा सके. इस उद्देश्य की पूर्ति तब ही हो सकेगी, जब ब्रिक्स बैंक द्वारा विश्व बैंक की नीतियों की स्पष्ट व्याख्या की जायेगी और अपने कार्यों में इनसे अलग नीतियों का पालन किया जायेगा.
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