अपनी मांग को लेकर राज्य के पारा शिक्षक आंदोलनरत हैं. पहले भी उन्होंने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया है. फिर भी उनकी हालत में सुधार नहीं हो रहा है.
उनकी मांग भी जायज है. आज उन्हें मानदेय के नाम पर जो राशि दी जा रही है, वह कुदाल-बेलचा चलानेवाले मजदूरों से भी कम है. इतनी राशि में महंगाई के इस दौर में घर-परिवार चलाना भी मुश्किल है.
इन कठिनाइयों के बावजूद अगर वे काम कर रहे हैं, तो सिर्फ इस लालच में कि आज नहीं तो कल उनकी मांगें मान ली जायेंगी. यह भी तय है कि स्कूलों में पारा शिक्षकों की संख्या अधिक है, लेकिन इस बीच सवाल यह भी पैदा होता है कि आखिर सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था लचर क्यों है?
यदि वे मेहनत करते हैं, बच्चों को शिक्षा के जरिये तराशते हैं, तो खोट कहां है? पारा शिक्षकों को इस पर भी विचार करना चाहिए.
अरविंद शर्मा, रांची