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मेरे सामने वाली सरहद पर..
राजेंद्र तिवारी कॉरपोरेट एडिटर प्रभात खबर भारत-पाकिस्तान के बीच इस समय जबरदस्त बयानबाजी का दौर चल रहा है. कहीं खबर आ रही है कि उधर परमाणु हथियारों का जखीरा है, तो कहीं खबर आ रही है कि 1981 में भारत पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने नष्ट करने के लिए हमले की योजना बना रहा था. राजनीतिक […]
राजेंद्र तिवारी
कॉरपोरेट एडिटर
प्रभात खबर
भारत-पाकिस्तान के बीच इस समय जबरदस्त बयानबाजी का दौर चल रहा है. कहीं खबर आ रही है कि उधर परमाणु हथियारों का जखीरा है, तो कहीं खबर आ रही है कि 1981 में भारत पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने नष्ट करने के लिए हमले की योजना बना रहा था.
राजनीतिक दलों व सरकारों की ओर से भी रोज बयानों के तीर चलते हैं. दोनों तरफ सोशल मीडिया पर हमलावर गाली-गलौच भरे पोस्ट देखने को मिल जायेंगे.
कोई पाकिस्तान को खत्म करने की बात कह रहा है, तो कोई परमाणु बम से उड़ा देने की धमकी दे रहा है. गूढ़ अर्थ निकाल कर लानेवाले लेख हैं, तो टीवी पर गरमागरम बहसें हैं. लेकिन सरहद के दोनों तरफ एक धारा और है, जो मौजूदा हालात से खुश नहीं है.
पिछले माह स्वतंत्रता दिवस पर एक गाना वायरल हुआ सरहद के इधर से और फिर उसका जवाब आया सरहद के उधर से. इन गानों को जितना पसंद किया गया, उससे यही पता लगता है कि यह जो एक और धारा है, वह दोनों तरफ के हुक्मरानों से खुश नहीं है और उसे लगता है कि समस्या सियासत की वजह से ही बनी हुई है.
इतिहास क्या है और ऐतिहासिक कारण क्या हैं, इसको वह शायद न समझती हो, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों को वह अपने तरीके से देखती है.
राहुल राम के बैंड इंडियन ओशन ने ‘ऐसी-तैसी डेमोक्रेसी’ शीर्षक के तहत एक पैरोडी बनायी. इस पैरोडी के प्रोमो में वह बोलते नजर आते हैं- डेमोक्रसी माता, तेरी सदा ही जय हो/ सांप के मुंह में छछुंदर जैसी/ निगली जाये न उगली जाये/ ऐसी-तैसी डेमोक्रेसी.
एक पैरोडी बनायी है 1968 में बनी सुनील दत्त-सायरा बानो की फिल्म पड़ोसन के सुपरहिट गाने ‘मेरे सामने वाली खिड़की में..’ की. यह पैरोडी गीत जारी किया गया ठीक स्वतंत्रता दिवस पर.
पैरोडी इस प्रकार है- मेरे सामने वाली सरहद पर सुनते हैं कि दुश्मन रहता है/ पर गौर से देखा जब उसको, वो तो मेरे जैसा दिखता है/ वहां मुल्ले यूट्यूब बैन करें, यहां पंडे किसिंग से घबराएं/ यहां रात और दिन नेता मारें/ वहां फौज का बंबू रहता है/.. यहां.. और.. वहां / बंब गिराना आसां है और वीजा मिलना मुश्किल है/ डेमोक्रेसी सड़ रही जेलों में और सरकारों में कातिल हैं/ बस दो ही फैमिली की चांदी है/ वहां भुट्टो है, यहां गांधी है/ मेरे सामने वाली सरहद पर.. यहां दो ही फैमिली से तात्पर्य दोनों मुल्कों के शासक वर्ग से है.
इस पैरोडी में बहुत सरल शब्दों में भारत व पाकिस्तान के हालात को उघाड़ दिया गया है. जब यह गाना वायरल हुआ, तो लगा था कि इस पर पाकिस्तानी साइटों और प्रोफाइलों की ओर से जबरदस्त निगेटिव प्रतिक्रिया होगी.
लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा और इससे बेहतर गाना उधर से आया. पाकिस्तानी सेना के अफसर मोहम्मद हसन मेराज ने इसके जवाब में पड़ोसन के गाने की ही पैरोडी के रूप में खूबसूरत गीत लिखा- ‘ऐसी-तैसी हिपोक्रैसी’ शीर्षक के तहत.
इसे गाया मुज्तबा अली ने. यह पैरोडी गीत इस प्रकार है- मेरे सामने वाली सरहद पर सुनते हैं कि दुश्मन रहता है/ सत्तर बरस होने को हैं, कुछ उखड़ा-उखड़ा रहता है/ उसकी सब फिल्मों, गानों में मुङो दहशतगर्द दिखाते हैं/ मेरे स्कूल के टीचर भी उसे दुश्मन कहके बुलाते हैं/ ../ तुम दुबई में बंदे जमा करो, हम चीन से प्यार बढ़ाते हैं../ गाली देना अब छोड़ भी दो, बैठें कुछ काम की बात करें/ कब तक बंदूक बनायेंगे, अब बच्चों को कुछ ज्ञान भी दें/ न भुट्टो का न गांधी का, यह तेरा-मेरा फंडा है/ वीजे, फिल्में और आशाएं, अब टोपी करवाना छोड़ भी दो/ असल में ये कुछ गोरों का, कुछ अरबों, कुछ ब्रेकिंग न्यूज का धंधा है.. इन दोनों गानों को यूट्यूब पर सुना जा सकता है. इन दोनों में कहीं-न-कहीं यह दर्द छिपा हुआ है कि दोनों मुल्कों के बीच जो दुश्मनी का माहौल बना रहता है, वह माहौल जनता के दिलों में नहीं है.
ये गीत बहुत खूबसूरती से उन कारणों की ओर साफ संकेत करते हैं, जिनके चलते हालात सुधर नहीं पाते. ये प्रतिरोध के गीत हैं.
मौजूदा हालात और कारकों का प्रतिरोध. यदि हम संसद में नहीं कह सकते, मीडिया में नहीं कह सकते, तो म्यूजिक तो बना सकते हैं कि हमें यह सब स्वीकार नहीं है. यहां मैं एक और गीत का जिक्र करना चाहूंगा, जो पाकिस्तान में इस समय चर्चा में है.
सोशल मीडिया, ब्लॉग आदि पर ‘इकबाल तेरे देश का क्या हाल सुनाऊं’ शीर्षक के तहत तमाम पोस्ट व वीडियो चल रहे हैं, जिनमें इकबाल की शायरी को उद्धृत किया गया है और उसके जवाब में मौजूदा हालात को शायरी के रूप में प्रस्तुत किया गया है.जैसे- हर दाढ़ी में है तिनका, हर आंख में शहतीर/ मोमिन की निगाहों से बदलती नहीं तकदीर.. इकबाल, तेरे देश का क्या हाल सुनाऊं.. यानी खदर-बदर है समाजों में. देखना है कि यह खदर-बदर कब सतह पर आकर उबाल बन पाती है.
और अंत में..
फिल्मकार पीयूष मिश्र ने 1995 में एक गीत लिखा था ‘हुस्ना’. कोक स्टूडियो ने इसे पीयूष मिश्र की ही आवाज में 3-4 साल पहले अपने सीजन-2 में प्रस्तुत किया. यह गीत हुस्ना की याद में है, जो विभाजन के बाद सरहद के उस तरफ रह गयी.
हुस्ना के बारे पीयूष मिश्र ने लिखा है- बात 1947 की है, जब लाहौर में हुस्ना और जावेद की शादी होनेवाली थी. तभी विभाजन हो गया और दोनों का सपना चूर-चूर हो गया. जावेद लखनऊ आ गया और वहीं उसने शादी कर ली. उसके दो बच्चे हो गये. 60 के दशक में जावेद हुस्ना को एक खत लिखता है और जानना चाहता है कि सरहद के उस तरफ अब सब कैसा है. पढ़िये यह गीत-
लाहौर के उस पहले जिले के दो परगना में पहुंचे / रेशम गली के दूजे कूचे के चौथे मकां में पहुंचे / और कहते हैं जिसको दूजा मुलुक उस पाकिस्तान में पहुंचे / लिखता हूं खत मैं हिंदुस्तां से, पहलु-ए- हुस्ना में पहुंचे.
ओ हुस्ना, मैं तो हूं बैठा, ओ हुस्ना मेरी यादें पुरानी में खोया,
पल-पल को गिनता, पल-पल को चुनता, बीती कहानी में खोया,
पत्ते जब झड़ते हिंदुस्तां में, यादें तुम्हारी ये बोले / होता उजाला हिंदुस्तान में, बातें तुम्हारी ये बोले../ ओ हुस्ना मेरी, ये तो बता दो, होता क्या ऐसा उस गुलिस्तान में / रहती हो गुमसुम नन्हीं कबूतर के जैसी जहां / पत्ते क्या झड़ते हैं पकिस्तान में वैसे ही जैसे झड़ते यहां, ओ हुस्ना / होता उजाला क्या वैसा ही है
जैसा होता हिंदुस्तां में यहां, ओ हुस्ना / वो हीरों के रांझों के नगमें मुझको अब तक आ-आकर सताएं / वो बुल्ले शाह की तकरीरों की झीने-झीने साये / वो ईद की इदी, वो लंबी नमाजे, सेवइयों के झाले / वो दिवाली के दीये संग में बैसाखी के बादल/होली की वो लकड़ी जिनमें संग-संग आंच लगायी/लोहड़ी का वो धुवां जिसमें धड़कन हैं
सुलगायी/ओ हुस्ना मेरी, ये तो बता दो लोहड़ी का धुआं क्या अब भी निकलता है/जैसा निकलता था उस दौर में वहां, ओ हुस्ना, हीरों के रांझों के नगमें क्या अब भी सुने जाते हैं वहां, ओ हुस्ना, और रोता है रातों में पाकिस्तान क्या वैसा ही जैसे हिंदुस्तान, ओ हुस्ना.
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