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कब तक भुनायेंगे एक ही चेहरा!
एक साल पहले पूरा देश परिवर्तन की राह ताक रहा था. सभी राजनीति और अपनी जिंदगी में कुछ नया चाहते थे. बीते लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के झोंके ने सब कुछ उड़ा दिया. इस परिवर्तन के साथ देश ने एक नये चेहरे को स्वीकार किया. मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश […]
एक साल पहले पूरा देश परिवर्तन की राह ताक रहा था. सभी राजनीति और अपनी जिंदगी में कुछ नया चाहते थे. बीते लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के झोंके ने सब कुछ उड़ा दिया. इस परिवर्तन के साथ देश ने एक नये चेहरे को स्वीकार किया.
मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश के कई राज्यों में चुनाव हुए. हर राज्य में चुनाव मोदी जी के नाम पर लड़ा गया. उनके ही दम पर नेताओं ने वोट बटोरने का काम किया. अब सबकी नजरें बिहार विधानसभा चुनाव पर आ कर टिक गयी हैं.
यह समझ में नहीं आता कि एक साल बाद भी नेताओं ने बिहार में भी मोदी जी के चेहरे को ही रख कर चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया? क्या भारतीय जनता पार्टी की बिहार इकाई में और कोई दमदार चेहरा नहीं है, जिसे आगे करके चुनाव लड़ा जा सके? क्या अभी तक बिहार के किसी नेता ने ऐसा काम नहीं किया, जो जनता के सामने पार्टी का चेहरा बन कर सामने आये? नेताओं को यह समझ में नहीं आता कि आज की जनता चेहरा नहीं विकास चाहती है?
अगर लोग विकास की आंकाक्षा नहीं रखते, तो आज देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह हेमा मालिनी, जया बच्चन या फिर कोई और होता. सुंदर चेहरे तो इस देश में कई हैं, लेकिन विकास हर कोई नहीं करा सकता. चुनावों में मिली जीत नेताओं के सोचने-समझने की शक्ति ही समाप्त कर देती है.
उन्हें चुनावों में या उससे पहले जनता से किये गये वादे याद ही नहीं रहते. चुनाव जीतने के बाद वे क्षेत्र में जाना भी मुनासिब नहीं समझते. इस देश के लोगों ने आम आदमी पार्टी के रंग देखे हैं, तो लालू, नीतीश और मुलायम की बेतुकी बातें भी सुनी है. ऐसे में आज का कोई भी मतदाता आंख बंद करके वोट थोड़े ही देगा.
हरिश्चंद्र महतो, बेलपोस, प सिंहभूम
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