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ऐसी हिंसा से समाज की बरबादी तय है
विवाद चाहे जो भी हो, कानून में भरोसे से ही शांतिपूर्ण समाधान की राह निकलती है. अगर समाज हिंसा-प्रतिहिंसा के सिद्धांत को अपना व्यवहार बना ले, तो यह देश भयानक रणक्षेत्र में बदल जायेगा, जिसका हासिल सिर्फ बरबादी होगी. किसी भी सभ्य और लोकतांत्रिक समाज में हिंसा की कोई जगह नहीं हो सकती. समाज में […]
विवाद चाहे जो भी हो, कानून में भरोसे से ही शांतिपूर्ण समाधान की राह निकलती है. अगर समाज हिंसा-प्रतिहिंसा के सिद्धांत को अपना व्यवहार बना ले, तो यह देश भयानक रणक्षेत्र में बदल जायेगा, जिसका हासिल सिर्फ बरबादी होगी.
किसी भी सभ्य और लोकतांत्रिक समाज में हिंसा की कोई जगह नहीं हो सकती. समाज में शांति, सद्भावना और सहभागिता का वातावरण स्थापित करने की साझा जिम्मेवारी शासन और समाज दोनों की है.
दुर्भाग्य से आज भारत सहित दुनिया के ज्यादातर हिस्से भयावह हिंसा की चपेट में है. पश्चिम बंगाल के मालदा में हॉकरों की एक भीड़ द्वारा रेलवे सुरक्षा बल के एक सिपाही की पीट-पीट कर की गयी हत्या इसी त्रसदी का लोमहर्षक उदाहरण है.
यह इस तरह की पहली घटना नहीं है और अगर हमने इससे सबक नहीं लिया, तो भविष्य में भी ऐसे हादसे होते रहेंगे. जैसा कि हमेशा होता है, मालदा स्टेशन पर हुई घटना के बारे में भी हॉकरों और रेलवे सुरक्षा बल के अपने-अपने विवरण हैं. हॉकरों का कहना है कि सुरक्षाकर्मी उन्हें प्रताड़ित किया करते थे, तो सुरक्षा बल की ओर से कहा गया है कि वे अपनी कानूनी जवाबदेही निभा रहे थे.
बहरहाल, यह जांच का विषय है, लेकिन कठोर सच यही है कि हॉकरों और सुरक्षाकर्मियों के बीच संघर्ष में एक व्यक्ति की जान चली गयी है और कई अन्य घायल हो गये हैं. अगर हॉकरों की शिकायत जायज भी है, तब भी उनकी हिंसा को किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता. सुरक्षाकर्मियों की कथित प्रताड़ना के विरुद्ध वे शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर सकते थे या फिर कानून की शरण ले सकते थे.
किसी भी परिस्थिति में कानून को अपने हाथ में लेते हुए एक गिरोह के रूप में सुरक्षाबलों पर हमला करना गंभीर अपराध है. उम्मीद है कि इस हमले और हत्या के दोषियों के विरुद्ध जल्दी ही कठोर कार्रवाई की जायेगी.
इस घटना को व्यापक परिदृश्य में देखने की जरूरत है. अपराधियों को पकड़ने या छापा मारने गयी पुलिस टीम या अतिक्रमण हटाने की कोशिश कर रहे कर्मचारियों पर संगठित हमलों की खबरें आये दिन सामने आती हैं. कुछ दिन पहले दिल्ली में अलग-अलग घटनाओं में ट्रैफिक पुलिसकर्मियों पर हमले किये गये.
ऐसी दो घटनाओं में ऑटोरिक्शा चालक शामिल थे, तो एक हमला हिंसक गिरोह द्वारा किया गया. कुछ वर्ष पहले उत्तर प्रदेश में एक जिला आपूर्ति पदाधिकारी को किरासन तेल में मिलावट करनेवाले अपराधियों ने जिंदा जलाने की कोशिश की थी. इसी तरह मध्यप्रदेश में एक युवा पुलिस अधिकारी को अवैध बालू खनन में लिप्त माफिया गिरोह ने ट्रैक्टर से कुचल दिया था.
इस तरह की घटनाओं में हिंसा के पक्ष में तर्क देनेवाले कुछ लोग कहते हैं कि शासन, प्रशासन और पुलिस की ज्यादतियों से तंग आकर लोगों को कई बार हिंसा का सहारा लेना पड़ता है.
ऐसे तर्क न सिर्फ हिंसा को बढ़ावा देते हैं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित कानून-व्यवस्था के लिए भी खतरनाक हैं. यह सही है कि अक्सर प्रशासनिक अधिकारी और पुलिसकर्मी जोर-जबर्दस्ती करते हैं. शासन के आचार-व्यवहार में भ्रष्टाचार और लापरवाही की घुसपैठ है. लेकिन, सरकार और उसकी एजेंसियों की गलतियों और खमियों के खिलाफ शिकायत करने, आवाज उठाने और अदालतों में जाने के अधिकार भी हमारे पास हैं.
इन उपायों को आजमाने और नतीजे हासिल करने में मुश्किलें हो सकती हैं, परंतु हिंसक हमले इनका विकल्प कतई नहीं बन सकते हैं. दुर्भाग्य से समाज में हिंसा की प्रवृत्ति को उकसा कर अपने स्वार्थो को साधने में कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों की भूमिका भी बहुत नकारात्मक रही है. वोट पाने और वर्चस्व बनाने के लिए वे आपराधिक तत्वों को संरक्षण देते हैं.
मालदा स्टेशन की इस घटना में शामिल हॉकरों को सोचना चाहिए कि इस हिंसा से उनकी समस्याओं का समाधान हुआ या बड़ा नुकसान हुआ है. उकसानेवाले तो बगल से कन्नी काट कर निकल जायेंगे, लेकिन आम हॉकरों को अपने उस व्यवसाय से हाथ धोना पड़ सकता है, जिससे उनके पूरे परिवार की रोजी-रोटी चलती है.
सवाल यह भी है कि ऐसे हमलों की स्थिति में माहौल को काबू में करने और अतिरिक्त सुरक्षा पहुंचाने में जानलेवा देरी के कारण क्या हैं?
सुरक्षाबलों और आम लोगों के बीच सहयोग की भावना और भरोसे की बहाली के लिए भी कोशिशें होनी चाहिए. सरकार समाज के प्रति उत्तरदायी है, तो समाज की भी यह जवाबदेही है कि वह कानून में निष्ठा रखे. विवादों के निपटारे के लिए जो तंत्र हमने बनाया है, उसके प्रति सम्मान रख कर ही हम इसे मजबूत कर सकते हैं.
विवाद चाहे जो भी हो, कानून में भरोसे से ही शांतिपूर्ण समाधान की राह निकलती है. अगर समाज हिंसा-प्रतिहिंसा के सिद्धांत को अपना व्यवहार बना ले, तो यह देश भयानक रणक्षेत्र में बदल जायेगा, जिसका हासिल सिर्फ बरबादी होगी.
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