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गुनहगारों के लिए यह कैसा तर्क

16 दिसंबर दिल्ली दुष्कर्म मामले के अभियुक्तों के वकील ने सुनवाई के दौरान, अदालत में गांधी जी के इस कथन का हवाला देते हुए अभियुक्तों को फांसी की जगह उम्रकैद देने की सिफारिश की कि जीवन देना ईश्वर का काम है और जीवन लेना भी उसी का काम है. मैं पूछना चाहता हूं कि क्या […]

16 दिसंबर दिल्ली दुष्कर्म मामले के अभियुक्तों के वकील ने सुनवाई के दौरान, अदालत में गांधी जी के इस कथन का हवाला देते हुए अभियुक्तों को फांसी की जगह उम्रकैद देने की सिफारिश की कि जीवन देना ईश्वर का काम है और जीवन लेना भी उसी का काम है.

मैं पूछना चाहता हूं कि क्या यह बात उन अभियुक्तों पर लागू नहीं होती है, जिन्होंने सारी मानवता की हदें पार कर बर्बरता से उस लड़की को ऐसे जख्म दिये जो एक सामान्य मनुष्य नहीं कर सकता और उसे सिर्फ और सिर्फ मरने और कराहने के लिए छोड़ दिया.

ऐसे पाशविक प्रवृत्ति वाले मनुष्य की सजा एक सभ्य समाज के लिए मृत्यु से कम नहीं हो सकती, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और ऐसे लोगों को एक सबक मिले. रहम की अपील सिर्फ उन लोगों के लिए की जा सकती है, जो इसके काबिल हों. वैसे आप क्या सोचते हैं?
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