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कृषि को मिलना चाहिए उद्योग का दर्जा
देश में भूमि अधिग्रहण बिल के बहाने किसानों के नफा-नुकसान पर राजनीतिक दलों के बीच एक जंग छिड़ी हुई है. तमाम दल किसान हित की बात करते दिख रहे हैं. जो बिल के पक्ष में हैं, वे भी और जो विरोध में हैं वे भी मैदान में उतरे हुए हैं. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी […]
देश में भूमि अधिग्रहण बिल के बहाने किसानों के नफा-नुकसान पर राजनीतिक दलों के बीच एक जंग छिड़ी हुई है. तमाम दल किसान हित की बात करते दिख रहे हैं. जो बिल के पक्ष में हैं, वे भी और जो विरोध में हैं वे भी मैदान में उतरे हुए हैं.
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात में दम लगता है कि आवश्यकतानुसार किसानों की जमीन ली जायेगी और बदले में मुआवजा के तौर पर एक मोटी रकम दी जायेगी. इससे विकास के काम तो होंगे ही, सिन भी दूसरे रोजगार से जुड़ सकेंगे. यह सच साबित हो सकता है, अपितु विरोधी दलों के इस दलील को भी खारिज नहीं किया जा सकता है कि भाजपा उद्योगपतियों के हित में भूमि अधिग्रहण बिल को नये और कठोर कानून का रूप देना चाहती है, जो किसान विरोधी होगा.
इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप से तो देश के किसानों का कुछ भला होनेवाला नहीं है, जबकि राजनीतिक दलों में किसानों के हित में असल मुद्दा ये होना चाहिए था कि कृषि कार्य के लिए नयी तकनीक और नये औजार, उत्तम किस्म के खाद-बीज और कीटनाशक मिलें. सिंचाई की सुविधा हो और प्रत्येक खेत में पानी-बिजली पहुंचाया जाये.
ये तमाम जरूरतें देश और किसान के जीवन से जुड़ी हुई हैं. इस पर बहस हो, तो कुछ सार्थक निष्कर्ष निकल सकते हैं. बहस होनी चाहिए कि निचले व मंझोले किसानों की बंजर भूमि पर जा सरकार को राजस्व तो देते हैं, लेकिन वह भूमि परती रहती है, उसे उपजाऊ बनाया जाये. किसानों की फसलों को उचित कीमत मिले. बाजार सुलभ हों, जहां किसान अपनी उपज को आसानी से बेच सकें. यदि हो सके, तो कृषि कार्य को उद्योग का दर्जा देकर इसे भी बढ़ावा दिया जाये. इससे देश और किसानों की संपन्नता बढ़ेगी.
बैजनाथ प्रसाद महतो, हुरलुंग, बोकारो
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