इस देश का प्रधानमंत्री भी अर्थशास्त्री, राष्ट्रपति भी अर्थशास्त्री, वित्त मंत्री भी अर्थशास्त्री और रिजर्व बैंक का गवर्नर भी अर्थशास्त्री.. फिर भी इस देश की अर्थव्यवस्था डूब रही है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पेश है एक कहानी : एक राजा था, जिसकी प्रजा हम भारतीयों की तरह सोयी हुई थी! बहुत से लोगों ने कोशिश की कि प्रजा जग जाये. जो कुछ गलत हो रहा है, उसका विरोध करे. लेकिन प्रजा को कोई फर्क
नहीं पड़ता था. राजा ने तेल के दाम बढ़ा दिये, प्रजा चुप रही. राजा ने अजीबो-गरीब टैक्स लगाये, प्रजा चुप रही. राजा जुल्म करता रहा, लेकिन प्रजा चुप रही. एक दिन राजा के दिमाग में एक बात आयी, उसने एक अच्छे-चौड़े रास्ते को खुदवा कर एक पुल बनाया. जबकि वहां पुल की कतई जरूरत नहीं थी. प्रजा फिर भी चुप थी, किसी ने नहीं पूछा कि ‘भाई यहां तो किसी पुल की जरूरत नहीं है तो फिर आप क्यों बना रहे हैं?’ राजा ने अपने सैनिक उस पुल पर खड़े करवा दिये और पुल से गुजरनेवाले हर व्यक्ति से टैक्स लिया जाने लगा, फिर भी किसी ने कोई विरोध नहीं किया! फिर राजा ने अपने सैनिकों को हुक्म दिया कि जो भी इस पुल से गुजरे, उसको चार जूते मारे जायें.
उसने एक शिकायत पेटी भी पुल पर रखवा दी कि किसी को अगर कोई शिकायत हो तो शिकायत पेटी मे लिख कर डाल दे, लेकिन प्रजा फिर भी चुप! राजा रोज शिकायत पेटी खोल कर देखता कि शायद किसी ने कोई विरोध किया हो, लेकिन उसे हमेशा पेटी खाली मिलती. कुछ दिनों के बाद अचानक एक चिट्ठी मिली, राजा खुश हुआ कि चलो कम से कम एक आदमी तो जागा. जब चिट्ठी खोली गयी तो उसमें लिखा था- ‘हुजूर, जूते मारनेवालों की संख्या बढ़ा दी जाये, हम लोगों को काम पर जाने में देरी होती है!’
सिद्धार्थ सिन्हा, कांके रोड, रांची