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अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा मिले

आज ज्ञान की 21वीं सदी बीती जा रही है. नित नये आविष्कार और खोज हो रहे हैं. मानव मस्तिष्क नित नयी ऊंचाइयां छू रहा है. इसके बावजूद, हमारे भारतीय समाज की परंपरागत, रूढ़िवादी मनोदशा में बदलाव देखने को नहीं मिलता. अंतरजातीय विवाह एक ऐसा विचार है, जिसे हमारे समाज में अधिकतर लोग स्वीकार नहीं करते […]

आज ज्ञान की 21वीं सदी बीती जा रही है. नित नये आविष्कार और खोज हो रहे हैं. मानव मस्तिष्क नित नयी ऊंचाइयां छू रहा है. इसके बावजूद, हमारे भारतीय समाज की परंपरागत, रूढ़िवादी मनोदशा में बदलाव देखने को नहीं मिलता. अंतरजातीय विवाह एक ऐसा विचार है, जिसे हमारे समाज में अधिकतर लोग स्वीकार नहीं करते या स्वीकार करने में हिचकते हैं. अब कम से कम इस ज्ञान युग में तो भारतीय समाज को अंतरजातीय विवाह को सामाजिक व सांस्कृतिक मान्यता दे देनी चाहिए. विचारणीय पहलू तो यह है कि विवाह का यह स्वरूप न केवल देश के सांस्कृतिक सोच को एकजुट करने में सहायक होगा, बल्कि राष्ट्रीय एकता की नींव भी पक्की होगी.

इसका सबसे सकारात्मक और रचनात्मक लाभ यह होगा कि इससे विवाहों के समय उत्पन्न होने वाली व्यवहारिक समस्याएं सुलङोंगी, सामाजिक संतुलन बढ़ेगा. यह बड़ी पहल आपसी सामाजिक मतभेदों को पाटेगी और समाज में एक-दूसरे को जोड़ने का कार्य करेगी. रही बात कथित ऊंच-नीच और बड़ी या छोटी जाति की, तो ये महज एक इनसानी सोच है, जिसे भारतीय समाज ने रूढ़िवादी मानसिकता तथा अपनी सुविधा के खातिर अपने जेहन में पाल रखा है.

यह सोच कभी न कभी बदल ही जायेगी और अब तो बदलनी ही चाहिए. सामाजिक मजबूती और सुखद भविष्य की खातिर वर्तमान में जहरीला स्वरूप ले रही जातिगत भावनाओं को कुचलने के लिए समाज में अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा मिले. सामाजिक एकता व राष्ट्रीय दृढ़ता के लिए यह एक ठोस पहल हो सकती है. ऐसे भी आजादी से लेकर अब तक, जातिवाद देश की नींव खोखली करने पर उतारू है. ऐसे में अंतरजातीय विवाह आज के समय की मांग है.

नारायण कैरो, लोहरदगा

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