* रघुराम राजन पर दारोमदार
भारतीय अर्थव्यवस्था को मुश्किलों के भंवर से निकालने की जिम्मेवारी अगले महीने की चार तारीख से रघुराम राजन के कंधों पर होगी. राजन अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके हैं और वर्तमान में वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था आज एक कठिन मोड़ पर खड़ी है. भारत का चालू खाते का घाटा बढ़ कर 4.8 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया है.
भारतीय रुपया, डॉलर के मुकाबले अब तक के न्यूनतम स्तर पर है. तरक्की की राह पर सरपट भागती अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त पड़ गयी है और इसे तत्काल टॉनिक की जरूरत है. देश का लघु अवधि का ऋण कुल विदेशी मुद्रा भंडार का करीब 59 फीसदी हो गया है. इन सबके साथ महंगाई की उच्च दर पिछले कुछ वर्षों से जस की तस बनी हुई है, जो रिजर्व बैंक के लिए ब्याज दरों में कटौती को नामुमकिन बनाये हुए है.
रघुराम राजन के सामने सबसे पहली चुनौती रुपये की ढलान को थामने की है. इसके साथ ही उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों के विश्वास को फिर से बहाल करना होगा. साथ ही मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखते हुए विकास को गति देनेवाली सहयोगी नीतियों का निर्माण करना होगा. इसके लिए सबसे पहले उन्हें अर्थव्यवस्था को लेकर रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के सोच के बीच के अंतर को कम करना होगा. वर्तमान आरबीआइ गर्वनर डी सुब्बाराव की मौद्रिक नीति में यह अंतर साफ झलकता है. वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा बैंक दरों में कमी करने के स्पष्ट ‘अनुरोधों’ के बावजूद सुब्बाराव ने मुद्रास्फीति की चिंताओं के मद्देनजर ऊंची ब्याज दर की नीति को जारी रखा. रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर राजन के सामने भी ‘सरकार का आदमी’ होने का कोई विकल्प नहीं है.
राजन भले विकास के पैरोकार समझे जाते हों, लेकिन मुद्रास्फीति पर उनका नजरिया सुब्बाराव से ज्यादा अलग नहीं माना जाता है. आरबीआइ गवर्नर के तौर पर नामित होने के बाद राजन की पहली प्रतिक्रिया यही थी कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे सारी समस्याओं का हल निकल आये. हां, उन्होंने यह यकीन जताया कि संकट इतना बड़ा नहीं है कि उससे पार न पाया जा सके. अपनी तीक्ष्ण वित्तीय समझ और संकटों के पूर्वानुमान के लिए दुनियाभर में विख्यात राजन के इस यकीन पर हम भरोसा कर सकते हैं.
हालांकि राजन को अभी एक ऐसी सरकार के साथ काम करना है, जो चुनावों की ओर बढ़ रही है, जिसे सिर्फ अर्थव्यवस्था की कमजोरियों से ही नहीं, अपनी कमजोरियों से भी लड़ना है. जाहिर है इससे राजन की चुनौतियां और कठिन ही होंगी.