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सरकार की नहीं हमारी लापरवाही

कितने शर्म और अफसोस की बात है कि जिस बिल को सरकार ने हम नागरिकों की भलाई के लिए पास किया था, उसे बस हम अपने स्वार्थ और आलस के कारण बुराई की चरम सीमा पर पहुंचा चुके हैं. जो बच्चे हमारे देश के भविष्य हैं, उनकी ही हत्या हो रही है. और इससे भी […]

कितने शर्म और अफसोस की बात है कि जिस बिल को सरकार ने हम नागरिकों की भलाई के लिए पास किया था, उसे बस हम अपने स्वार्थ और आलस के कारण बुराई की चरम सीमा पर पहुंचा चुके हैं. जो बच्चे हमारे देश के भविष्य हैं, उनकी ही हत्या हो रही है. और इससे भी ज्यादा अफसोस की बात यह है कि हमलोग अपनी जिम्मेदारियों से भागने के लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं.

सरकारी स्कूलों के मास्टर साहब खुद अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाते हैं और अपने स्कूल में पढ़ रहे बच्चों की जान की भी परवाह नहीं करते हैं. यह दुर्घटना केवल छपरा या बिहार तक सीमित नहीं है. हर राज्य में इसका यही हाल है. सरकार आकर अपने हाथों से बच्चों को खाना नहीं बांटती है. इसकी पूरी जिम्मेवारी स्कूल के शिक्षकों और प्रधानाचार्यो पर होती है. अब इसमें कोई दुर्घटना होती है, तो उसकी पूरी जिम्मेवारी स्कूल के शिक्षकों और प्राचार्य की ही होनी चाहिए.

छपरा में घटी इस दुखद घटना में भी स्कूल के कर्मचारियों का ही दोष है, जिन्होंने लापरवाही बरतते हुए खाने की निगरानी नहीं की और 22 बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.
।। नीलम कुमारी ।।

(चाईबासा)

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