।। पुष्परंजन ।।
(ईयू–एशिया न्यूज के संपादक)
– बोफोर्स केस से जुड़े हिंदुजा, विन चड्ढा अब दुनिया में नहीं हैं. ‘आर’ भी इस दुनिया में नहीं रहे, और इस केस की अंतिम कड़ी ‘क्यू’ भी दुनिया से विदा ले चुके हैं. लेकिन इससे किसी ने सबक ली? –
सेक्रेटरी मारिऑन केन्नॉप इतालवी अच्छी बोल लेती थी, जिससे क्वात्रोच्चि की बेटी का भरोसा जीतने में हम सफल रहे थे. तय समय पर फोन द्वारा हमने रिकार्डिग शुरू की. तबीयत और कुशलक्षेम के बाद क्वात्रोच्चि ने जैसे मेरा नाम पूछा, और जाना कि मैं भारत से हूं, उसने पैंतरा बदलने में सेकेंड नहीं लगाया, और कहा कि मैं तो क्वात्रोच्चि का कुक (खानसामा) हूं. साहब अभी हैं नहीं. ‘साहब कब आयेंगे, बात करेंगे, पता नहीं’, जैसे मक्कारी भरे जवाब के साथ क्वात्रोच्चि ने फोन काट दिया.
हमारे हाथ से तोते उड़ चुके थे. बाद में डॉयचेवेले टीवी के एक साउंड इंजीनियर ने क्वात्रोच्चि द्वारा किसी और मौके पर दिये बयान से हमारी रिकार्डिग को मैच कराया. वह खानसामा नहीं, क्वात्रोच्चि ही था. हमने अपने एक कार्यक्रम में ‘खानसामा क्वात्रोच्चि’ से हुई बातचीत को चलाया भी. यह था चार आंखों वाला लोमड़ी की तरह चालाक ‘क्वात्रोच्चि’! विफल रिकॉर्डिग की इस व्यथा–कथा के कोई हफ्ते भर बाद पता चला कि भारतीय कानून मंत्रालय के एक अधिकारी बिना सीबीआइ की जानकारी के लंदन आये और ब्रिटिश सरकार को फ्रीज खाते को खोल देने के लिए राजी कर लिया.
क्वात्रोच्चि के दोनों खातों से पैसे निकाले जा चुके थे. लेकिन क्वात्रोच्चि पर से इंटरपोल का वारंट नहीं हटा था. 6 फरवरी, 2007 को अर्जेटीना में इंटरपोल ने उसे हिरासत में ले लिया. जून, 2007 तक सीबीआइ ने क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण के सिलसिले में जिस तरह की लापरवाही दिखायी और उस पर लगे आरोपपत्र नहीं पेश किये गये, उसका फायदा क्वात्रोच्चि को मिला, और उसे अर्जेटीना की अदालत ने रिहा कर दिया.
कोर्ट ने बल्कि क्वात्रोच्चि को मुआवजा देने को कहा था. इस कांड से कांग्रेस की काफी भद्द पिटी, पर उसका कोई असर नहीं पड़ा. यह बात देश से बाहर भी लोग जान रहे थे कि क्वात्रोच्चि की रिहाई तक उसका बेटा मासिमो क्वात्रोच्चि दिल्ली में बैठा रहा. फाइनेंस के व्यापार में लगे क्वात्रोच्चि के बेटा मासिमो का बेंगलुरु में बड़ा–सा ऑफिस है. साथ ही लक्जमबर्ग स्थित एक फाइनेंस कंपनी ‘क्लबइन्वेस्ट सारी’ में मासिमो क्वात्रोच्चि सलाहकार की हैसियत से है. सत्ता के गलियारे में चंद लोगों को पता है कि मासिमो क्वात्रोच्चि का बचपन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ गुजरा है. यह दोस्ती क्या क्वात्रोच्चि की रिहाई के काम आयी थी? इसका बेहतर जवाब राहुल और प्रियंका गांधी ही दे सकते हैं.
सिसली (इटली) के मसक्कली में जन्मा ओत्तावियो क्वात्रोच्चि 60 के दशक में एक इतालवी तेल–गैस कंपनी ‘इएनआइ’ और इसकी शाखा ‘स्नैमप्रोगेत्ती’ का प्रतिनिधि बन कर भारत आया. क्वात्रोच्चि के चारों बच्चे भारत में ही पैदा हुए. स्पेशल जज प्रेम कुमार ने 2002 में टिप्पणी की थी, ‘1974 के आसपास एक इतालवी मिस्टर मोलिनारी ने ओत्तावियो क्वात्रोच्चि की मुलाकात राजीव गांधी और सोनिया गांधी से करायी थी. उस समय राजीव गांधी इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे.’
1984 में तीस किलोमीटर मारक क्षमता वाली होवित्जर तोपों की सप्लाई के लिए भारत सरकार ने एक टेंडर निकाला. उस समय जिन तोपों का ट्रायल हुआ, उसमें फ्रेंच तोप सोफमा के लिए ऑर्डर देने के पक्ष में तत्कालीन सेना प्रमुख के सुंदरजी थे. लेकिन सप्लाई का ऑर्डर मिला स्वीडन की कंपनी बोफोर्स को. 1987 में स्वीडिश रेडियो ने एक रिपोर्ट प्रसारित कर पूरी दुनिया को चौंका दिया कि बोफोर्स तोप सौदे में दलाली खायी गयी है. इसके कुछ महीनों बाद बोफोर्स कंपनी के एमडी मार्टिन आर्डबो की डायरी दो पत्रकारों– चित्र सुब्रमणियम और एन राम के हाथ लगी, जिसमें मार्टिन आर्डबो ने लिखा था, ‘क्यू’ के शामिल होने से समस्या खड़ी हो सकती है, क्योंकि वह ‘आर’ के करीब है.’
‘आर’ भी इस दुनिया में नहीं रहे, और इस केस की अंतिम कड़ी ‘क्यू’ भी दुनिया से विदा ले चुके हैं. लेकिन इससे किसी ने सबक ली? बोफोर्स से कई सौ गुना बड़े घोटाले बाद के दिनों में होते चले गये. अब घोटालों के पर्दाफाश से सरकारें नहीं गिर रही हैं. क्या भारतीय राजनीति का पतन हो गया? या वोट देने वालों के पास इस पर सोचने की फुरसत नहीं है?