बिहार से अलग होने के बाद झारखंड की राजनीतिक पृष्ठभूमि हलचलों से भरी हुई है. इन 13 वर्षो में कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. इसी अवधि में आठ सरकारें बनीं और तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा. और अब जाकर नौंवीं सरकार अपने अस्तित्व में आयी है. लेकिन अभी बहुमत साबित किया जाना बाकी है और कहा नहीं जा सकता कि ऊंट किस करवट बैठेगा.
झारखंड गठन के बाद से ही यहां के भ्रष्ट नेताओं के पद लोलुपता का जो दौर शुरू हुआ था, वह अब तक जारी है. बेचारी यहां की जनता इन भ्रष्ट नेताओं द्वारा राजनीति में खेले जा रहे फुटबॉल के खेल से परेशान है. यहां के नेता अपने वाहनों के काफिले में 10-20 पुलिस गाड़ियां और लाल बत्ती वाली गाड़ी के लिए बेचैन रहते हैं.
सरकार बनने के बाद यहां के नेता रूठने और मनाने का बहुत निराला खेल खेलते हैं. इनका पांच साल का समय इसी में गुजर जाता है. अब बिना विकास का काम किये अगली बार जनता दरबार में जाते हैं, तो वहां इनको वोट के लिए पैसा और शराब से काम चलाना पड़ता है. वैसे जनता भी इस अव्यवस्था की कम जिम्मेवार नहीं है.
।। हरीशचंद्र कुमार ।।
(पांकी)