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धर्म की नहीं, इंसानियत की जरूरत

आज जब धर्मातरण और ‘घर वापसी’ पर बहस छिड़ी हुई है, तो हंसी आती है. इस बहस के बीच इंसान कहां है? भगवान ने हमें धरती पर सिर्फ एक इंसान या मनुष्य के रूप में ही भेजा है, लेकिन क्या हम इंसान बन पाये? इसका उत्तर ‘नहीं’ है. आज जरूरत एक धार्मिक व्यक्ति बनने की […]

आज जब धर्मातरण और ‘घर वापसी’ पर बहस छिड़ी हुई है, तो हंसी आती है. इस बहस के बीच इंसान कहां है? भगवान ने हमें धरती पर सिर्फ एक इंसान या मनुष्य के रूप में ही भेजा है, लेकिन क्या हम इंसान बन पाये? इसका उत्तर ‘नहीं’ है.

आज जरूरत एक धार्मिक व्यक्ति बनने की नहीं है, बल्कि एक अदद इंसान बनने की है, जो मानवता के साथ-साथ धरती को बचाए रखने में अहम भूमिका निभाये. पाकिस्तान के पेशावर या फिर भारत के असम में, अबोध बच्चों की हत्या करनेवाले न मुसलमान हैं, न हिंदू. वे इनसान भी नहीं. वे तो सिर्फ और सिर्फ राक्षस हैं.

हम आज किस हिंदू और मुसलमान की बात करते हैं, जो गर्भ में पल रही बच्चों तक की हत्या कर रहे हैं. ऐसे लोगों को मैं हिंदू, मुसलमान और अन्य जातिवर्ग का नहीं मानता, बल्कि राक्षस मानता हूं. वे दानव हैं. जो आज चंद पैसों और गहनों के लिए दुल्हन को जला रहे हैं, वे क्या हैं? क्या वे इंसान हैं? नहीं, वे केवल दानव हैं. आज जो मजदूरों को कोड़ा मार कर भूखे रख बेड़ियों से जकड़ कर बच्चों से मजदूरी कराते हैं, वे क्या हिंदू, मुसलमान या इसाई हैं? नहीं, वे सभी अमानव हैं. हम किस हिंदू और मुसलमान होने पर अभिमान करते हैं. जब बेटियों की अस्मत लूटी जाती है, तो लोग टीवी चैनलों पर बहस करते नजर आते हैं. आखिर हम किस मुंह से इन बहस-मुबाहसों में हिस्सा लेते हैं. एक ओर हमारे घरों में बच्चों, स्त्रियों, मजदूरों और कामगारों पर अत्याचार हो रहा होता है और दूसरी ओर हम बहसों में बैठ कर डींग हांकते हैं. चैनलों पर डींग हांकने के बजाय इंसानियत का पाठ पढ़ायें, तो देशहित में कहीं बेहतर होगा. इंसानियत को इंसानियत ही रहने दें, उसे हिंदू, मुसलमान की खाल न पहनायें, तो बेहतर होगा.

डॉ अरुण कुमार सज्जन, जमशेदपुर

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