17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

उम्मीदें -चुनौतियां

अनुज कुमार सिन्हा झारखंड की कमान अब रघुवर दास के हाथ में है. बहुमत के साथ. एक ऐसे नेता के हाथ में, जो झारखंड की जमीनी हकीकत को बखूबी जानते हैं. 14 साल में झारखंड की जो भी स्थिति बनी है, वहां से उसे निकाल कर बेहतर करने की चुनौती उनके सामने है. रघुवर दास […]

अनुज कुमार सिन्हा

झारखंड की कमान अब रघुवर दास के हाथ में है. बहुमत के साथ. एक ऐसे नेता के हाथ में, जो झारखंड की जमीनी हकीकत को बखूबी जानते हैं. 14 साल में झारखंड की जो भी स्थिति बनी है, वहां से उसे निकाल कर बेहतर करने की चुनौती उनके सामने है. रघुवर दास झारखंड की राजनीति के रग-रग से परिचित हैं. पांचवीं बार विधायक, शिबू सोरेन की सरकार में उपमुख्यमंत्री और उसके पहले मंत्री रह चुके हैं. भाजपा के प्रांतीय अध्यक्ष रह चुके हैं.

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी. राजनीति से बाहर की बात करें, तो मजदूरों के दर्द को समझते हैं, खुद टाटा स्टील में मजदूर के पद से आगे बढ़े. यानी हर घाट-घाट से परिचित हैं. सरकार भी बहुमत की, इसलिए राज्य को चलाने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी, ऐसा लगता है. राज्य की जनता पानी, बिजली, बेरोजगारी, स्वास्थ्य और अनेक परेशानियों से तबाह है. यह सूची काफी लंबी है. वह विकास के लिए तड़प रही है. ऐसे मौके पर यह सरकार बनी है, इसलिए इस सरकार से जनता को बहुत उम्मीदें हैं. यह भी सत्य है कि झारखंड जहां खड़ा है, वहां रातो-रात चीजें नहीं बदल सकतीं. पटरी से उतर चुकी चीजों को पटरी पर वापस लाना होगा. रघुवर दास में कड़े फैसले लेने की क्षमता है. काम लेने की क्षमता है. इसी क्षमता का अब इम्तिहान होगा.

राज्य के विकास में ब्यूरोक्रैट्स की बड़ी भूमिका होती है. लेकिन झारखंड में अपवाद को छोड़ दें, तो किसी भी ब्यूरोक्रैट्स ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिसे याद किया जा सके. इसके उलट, राज्य के इस हालात के लिए ब्यूरोक्रैट्स भी दोषी हैं. काम नहीं करना और काम नहीं होने देना, काम को लटकाना, हर फाइल में अड़ंगा लगाना, इस प्रवृत्ति को ब्यूरोक्रैट्स को छोड़ना होगा. राजनीतिक कारणों से कई अच्छे ब्यूरोक्रैट्स को किनारे भी किया गया है. अब समय आ गया है, जब अच्छे अधिकारियों को खोज-खोज कर बाहर निकाला जाये (यही काम तो प्रधानमंत्री ने भी किया है), ताकि वे काम करें भी और काम लें भी. रिजल्ट नहीं देनेवाले दंडित हों और काम करनेवाले पुरस्कृत. यह तभी होगा, जब ब्यूरोक्रैट्स पर नियंत्रण हो. ब्यूरोक्रैट्स सरकार को नचाये नहीं, बल्कि सरकार के निर्णयों को लागू करे.

काम लेने में और अच्छे अफसरों को खोजने में रघुवर दास माहिर हैं. इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि सही अधिकारी, सही जगह बैठेंगे. कोई पैरवी नहीं, कोई दबाव नहीं.

समस्याएं हैं और रहेंगी भी. एक खत्म होगी, तो नयी समस्याएं आयेंगी. इसी में काम करना है. इस बार जो विधायक चुन कर आये हैं, उनमें से अधिकतर जानकार हैं. इसी टीम से काम लेना है. इसलिए नये साल में नये जोश, नये उत्साह के साथ इन्हें लगना होगा. जनता विकास चाहती है. इस राज्य में संसाधन भरपूर है, अब उसका उपयोग करना होगा. राज्य के लोगों को 24 घंटे बिजली मिले, सड़कें बेहतर हों, पीने का शुद्ध पानी मिले, सरकारी दफ्तरों में बिना पैसे दिये काम हो, कानून-व्यवस्था बेहतर हो, लोगों को रोजगार मिले, अस्पतालों में दवा-डॉक्टर रहें, इलाज करें, पढ़ाई की बेहतर सुविधा हो, स्कूल-कॉलेजों में शिक्षक रहें, समय पर परीक्षा (प्रतियोगी) हो, रिजल्ट निकले, उच्च शिक्षा के लिए राज्य में प्रसिद्ध संस्थान खुले ताकि छात्रों को दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़े, जनता तो बस इतना ही चाहती है. राज्य के कई शहर (रांची समेत) जाम से परेशान हैं. 20 मिनट की यात्र घंटे में पूरी होती है. सड़कें चौड़ी नहीं हैं. गाड़ियां अधिक हैं, फ्लाइओवर नहीं बन रहे. योजनाएं फाइल में हैं. नयी राजधानी को लेकर बार-बार निर्णय बदलते रहे हैं. इन सभी पर निर्णय लेना होगा. बहाली अगर बंद हैं तो नीतियां बनानी होंगी. हर कुछ तुरंत संभव नहीं हो सकता लेकिन तत्काल लिये कुछ निर्णयों से सरकार के प्रति विश्वास बढ़ेगा.

राज्य बदनाम है भ्रष्टाचार के कारण. सड़कें बनती हैं, पुल बनते हैं, सरकारी भवन बनते हैं. कमीशनखोरी के कारण एक-दो साल में ये टूट जाते हैं. सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी दलालों पर नियंत्रण. हर सरकार में ऐसे लोग घुस जाते हैं जो सरकार चलाते हैं, इस संस्कृति पर मुख्यमंत्री को नकेल कसना होगा. बेईमान अफसरों के खिलाफ कार्रवाई से अच्छा संदेश जायेगा कि सुशासन है. आज भी झारखंड की बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. उनके लिए योजनाएं तो हैं लेकिन उनके हालात नहीं बदल रहे. जहां 14 साल पहले थे, आज भी वहीं हैं. सरकार को नीतियां बना कर हालात बदलने के उपाय करने होंगे. मुख्यमंत्री (शपथ रविवार को लेंगे) ने कहा है कि वे हर वर्ग का ख्याल करेंगे, महत्वपूर्ण है. झारखंड में लगभग 26 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. यह वर्ग सशंकित है. इस संशय को दूर करने की चुनौती भी रहेगी. कोई भी बड़ा फैसला लेना हो, इसमें इस वर्ग को विश्वास में लेना होगा. आदिवासियों का भी तेजी से उत्थान कैसे हो, उनमें शिक्षा का प्रचार-प्रसार कैसे बढ़े, इस पर काम करना होगा.

झारखंड की जनता ने बहुमत की सरकार का निर्णय सुनाया है, इसलिए अब वह स्थिति नहीं है कि कोई सरकार को ब्लैकमेल करे. केंद्र का भी समर्थन है. वहां भाजपा की सरकार है. वहां से मदद मिलेगी. राज्य के विकास के लिए इससे बेहतर मौका शायद ही कभी मिले. यह जनता भी महसूस कर रही है, इसलिए उम्मीदे हैं. अगर सब कुछ ठीक रहा, फैसले होने लगे, काम दिखने लगे तो तमाम चुनौतियों के बावजूद यही झारखंड देश का सबसे विकसित राज्य बन सकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें