14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गंठबंधन या सांठ-गांठ की राजनीति?

झारखंड में एक बार फिर सरकार बनने की कवायद चल रही है या यूं कहें कि अंतिम चरण में है. इस बार का झामुमो-कांग्रेस गंठबंधन कई मायने में महत्वपूर्ण है. दोनों पार्टियों के बीच लोकसभा में पांच राज्यों (झारखंड, बिहार, ओड़िशा, प बंगाल व छत्तीसगढ़) में गंठजोड़ कर चुनाव लड़ने पर सहमति बनी है. वहीं […]

झारखंड में एक बार फिर सरकार बनने की कवायद चल रही है या यूं कहें कि अंतिम चरण में है. इस बार का झामुमो-कांग्रेस गंठबंधन कई मायने में महत्वपूर्ण है. दोनों पार्टियों के बीच लोकसभा में पांच राज्यों (झारखंड, बिहार, ओड़िशा, प बंगाल व छत्तीसगढ़) में गंठजोड़ कर चुनाव लड़ने पर सहमति बनी है. वहीं इसके बदले झारखंड में हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने पर कांग्रेस राजी हुई है. इस गंठजोड़ में अंतर्निहित सांठ-गांठ साफ दिखती है. हालांकि वर्तमान में अधिकतर राज्यों और देश में गंठबंधन की सरकार मजबूरी बन गयी है.

ऐसे में सभी राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय पार्टी रूपी बैसाखी की जरूरत है. झारखंड के मद्देनजर देखा जाये, तो इस गंठबंधन से लोगों का कितना भला होने वाला है, यह तो आनेवाला समय की बता पायेगा. पर एक बात साफ है कि कांग्रेस 2014 का लोकसभा चुनाव देख रही है. झारखंड व यहां की जनता की परवाह कांग्रेस को बहुत कम है. तभी निर्दलीयों के सहारे एक बार फिर सरकार बनाने की जिम्मेवारी हेमंत सोरेन को सौंपी गयी है. वर्तमान में झारखंड के कई निर्दलीय विधायकों पर कई मामले चल रहे हैं. ऐसे लोगों के सहारे अगर सरकार बनती है, तो इसकी गारंटी कौन देगा कि एक बार फिर राज्य में भ्रष्टाचार का बोलबाला नहीं बढ़ेगा.

लोकसभा चुनाव में यदि परिणाम झामुमो-कांग्रेस गंठबंधन के खिलाफ जाता है, तो फिर झारखंड की इस सरकार का क्या होगा? झामुमो व कांग्रेस दोनों पार्टियां झारखंड में अपनी-अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए एक -दूसरे का सहारा तो बनी हैं, लेकिन कई ऐसे सीटें हैं जहां पर झामुमो व कांग्रेस में हमेशा से आमने-सामने की टक्कर रही है. ऐसे में दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को एक मंच पर लाना कितना कठिन होगा, शायद इसका जबाव दोनों दलों के वरीय नेताओं के पास भी नहीं होगा.

वहीं नये गंठजोड़ के बाद यह भी साफ है कि हेमंत सोरेन खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए ही भाजपा से अलग हुए थे. ऐसे में राष्ट्रपति शासन की अवधि समाप्त होने से पूर्व नयी सरकार गठन को लेकर जो भी परिदृश्य बन रहा है, यह झारखंड के हित के लिए कितना सही है, इसका अंदाजा यहां का बुद्धिजीवी वर्ग भी नहीं लगा पा रहा है. सरकार बनाने के लिए मंत्री पद, बोर्ड-निगम में भागीदारी व लेन-देन की सांठ-गांठ चल रही है. क्या यह स्वस्थ राजनीति है? आखिर यहां के नेता अपने हित के साथ-साथ जनता के हित में कब सोचना शुरू करेंगे?

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें