झारखंड की राजधानी रांची टाइम बम पर बैठी है. यह टाइम बम कुछ और नहीं, बल्कि हमारे घरों, हमारे शहर से निकलने वाला कचरा है. रांची में रोज 600 टन से ज्यादा कचरा निकलता है.
इस कचरे के निबटारे की कोई योजना रांची नगर निगम के पास नहीं है. बहुत सा कचरा इधर-उधर सड़कों, गलियों, मोहल्लों में बिखरा रहता है. जो कचरा उठता भी है, वह बिना छांट-बीन के सीधे झिरी नामक जगह पर फेंक दिया जाता है. वहां रोज लगभग 450 टन कचरा फेंका जाता है.
एक तरह से कचरे का पहाड़ तैयार किया जा रहा है. कचरे की वजह से झिरी और उसके आसपास के इलाकों में गंदगी और बदबू का साम्राज्य कायम हो गया है. कचरे से जो जहरीला तरल निकलता है, वह जमीन के नीचे जाकर भूमिगत जलस्नेत को जहरीला बना रहा है. इन सबकी वजह से वहां बीमारियां फैल रही हैं. सवाल है कि ङिारी के लोगों ने ऐसा क्या गुनाह किया है कि उन्हें शहर भर के कचरे की गंदगी ङोलने की सजा दी जा रही है. अगर मोहल्ले में किसी जगह दो-चार ठेला कचरा पड़ा रहे तो हम बेचैन हो जाते हैं, तो उन लोगों की तकलीफ के बारे में सोचें जो लाखों ट्रक कचरे के साथ जी रहे हैं. इन सबके लिए नगर निगम जिम्मेदार है. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को स्वच्छ बनाने का आह्वान बार-बार कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी से समर्थन प्राप्त रांची नगर निगम की मेयर कचरा प्रबंधन के लिए क्या कर रही हैं, कुछ पता नहीं चल रहा है.
आज कचरा प्रबंधन के बिना कोई शहर खुद को टिकाये नहीं रख सकता. गीला और ठोस कचरा अलग होना चाहिए. गीले और जैविक कचरे को खाद में बदला जाये. और ठोस व अविघटनीय कचरे को पुनर्चक्रण के लिए भेजा जाये. अगर सही से, आधुनिक व वैज्ञानिक ढंग कचरा प्रबंधन हो, तो कचरा कचरा नहीं, बल्कि संसाधन है. इसके निबटारे पर करोड़ों खर्च होने की जगह करोड़ों की कमाई हो सकती है. यही हाल जल निकासी है. नालियों का पानी नाले (जो कभी छोटी-छोटी पहाड़ी नदियां थीं) में, और नाले का पानी अंत में सुवर्णरेखा नदी में जाता है. रांची शहर के पाय यह नदी पूरी तरह जहरीली हो गयी है. रांची में गंदे पानी के उपचार का इंतजाम भी जल्द से जल्द होना चाहिए.