मोरचा चाहे रोजगार का हो या भ्रष्टाचार का, निराशाजनक हालात को बदलने में समय लगता है. लेकिन, अंतरराष्ट्रीय संस्था मैनपॉवर ग्रुप का ताजा सर्वेक्षण रोजगार के मोरचे पर भारतीय नौजवानों को अच्छे दिन आने का संदेश सुना रहा है. सर्वेक्षण के अनुसार केंद्र में नयी सरकार बनने के साथ रोजगार के क्षेत्र में आशाएं बलवती हुई हैं.
सरकार की स्थिरता और नीतियों की स्पष्टता के चलते नौकरी देनेवालों में भरोसा बढ़ा है और वे अक्तूबर-दिसंबर की तिमाही में नौकरियों की एक तरह से बारिश करनेवाले हैं. सर्वेक्षण के अनुसार रोजगार के सर्वाधिक मौके सेवा, निर्माण-कार्य और खनन क्षेत्र से निकलने वाले हैं. लेकिन, अहम सवाल यह है कि क्या रोजगार के नये अवसरों के अनुकूल कौशल की पूर्ति मौजूदा स्थिति में संभव होगी? तात्कालिक तौर पर भले ही उच्चशिक्षा प्राप्त कुछेक सौभाग्यशालियों को इन क्षेत्रों में नौकरी मिल जाये, लेकिन अर्थव्यवस्था की बदलती जरूरतों के अनुरूप कायदे से कौशल-निर्माण कर पाने में भारत अभी बहुत पीछे है.
वैश्वीकरण के दौर में अर्थव्यवस्था विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रधानता के बूते आगे बढ़ती है, लेकिन मैनपॉवर ग्रुप के सर्वेक्षण में ही कहा गया है कि भारत फिलहाल भारी ‘टैलेंट-क्राइसिस’ से गुजर रहा है. मसलन, इसमें कहा गया है कि साल 2020 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी जरूरत की तुलना में 15 से 22 लाख इंजीनियरों का अभाव ङोलना होगा.
इससे जुड़ा सवाल यह है कि अगर नयी अर्थव्यवस्था प्रौद्योगिकीगत ज्ञान से संपन्न लोगों की मांग करती है, तो क्या देश इस मामले में जरूरी निवेश कर पा रहा है? रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के महानिदेशक ने पिछले साल कहा था कि देश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम 1000 विद्यार्थियों में से मात्र 4 ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को अपने उच्च अध्ययन का विषय बनाते हैं. ध्यान रहे, भारत में अभी मात्र 12 प्रतिशत विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त कर पा रहे हैं. इस आंकड़े को 30 प्रतिशत तक ले जाने के लिए देश में अगले दस सालों में 35 हजार नये कॉलेज खोलने होंगे. मतलब साफ है कि जब तक हम अर्थव्यवस्था की जरूरत के अनुरूप शिक्षा का आधारभूत ढांचा तैयार नहीं कर लेते, रोजगार के मोरचे पर टिकाऊ अच्छे दिन की बात में शंका बनी रहेगी.