डिजिटल तकनीक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है और इसका लगातार विस्तार हो रहा है. लेकिन दुनिया का कारोबारी जगत इसके लिए समुचित रूप से तैयार नहीं दिख रहा है.
दावोस में चल रहे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में जारी एक रिपोर्ट में दुनियाभर की बड़ी कंपनियों के 82 फीसदी शीर्ष अधिकारियों ने यह तो माना है कि उनके व्यापार के प्रभावी बने रहने और प्रतिस्पर्द्धा में टिके रहने के लिए डिजिटल तकनीक की समझ रखनेवाला नेतृत्व जरूरी है, पर 10 फीसदी से भी कम ने ही यह स्वीकार किया है कि नयी डिजिटल अर्थव्यवस्था में उनकी कंपनी के पास ऐसा सक्षम नेतृत्व उपलब्ध है. केवल 40 फीसदी ने यह जानकारी दी है कि उनकी कंपनी ऐसे लोगों को आगे लाने की दिशा में जरूरी कदम उठा रही है.
झंझावातों से घिरी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए निश्चित रूप से यह एक चिंताजनक संकेत है क्योंकि आनेवाले समय में 5-जी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन जैसी तकनीकें मौजूदा परिवेश को पूरी तरह से बदल देंगी. इसके अलावा डिजिटल सुरक्षा, डेटा संरक्षण एवं वस्तुओं की ढुलाई, सेवाएं देने व लेन-देन के निपटारे को तेज करने में चुनौतियां भी बहुत बढ़ जायेंगी. करीब सवा सौ देशों के चार हजार से ज्यादा कारोबारियों के बीच हुए सर्वेक्षण पर आधारित इस रिपोर्ट पर भारत को गंभीरता से विचार करना चाहिए. उभरती अर्थव्यवस्थाओं की अगली पंक्ति में खड़े हमारे देश को अगले कुछ सालों में पांच ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी बनाने का लक्ष्य को पूरा करने के लिए डिजिटल तकनीक पर आधारित बड़े तंत्र का विकास जरूरी है.
इसी वजह से पिछले बजट में इस मद में अधिक निवेश की घोषणा हुई थी और डिजिटल लेन-देन को आकर्षक बनाने पर जोर दिया गया था. आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, डिजिटल उपभोक्ताओं के मामले में हमारा देश दुनिया में दूसरे स्थान पर है और 17 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में बढ़त के हिसाब से भी दूसरे पायदान पर है.
वर्ष 2025 तक भारत में डिजिटल आर्थिकी का आकार लगभग एक ट्रिलियन डॉलर होने की उम्मीद है, जो कि अभी 200 अरब डॉलर के आसपास है. पिछले साल जारी रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटल प्रतिस्पर्द्धा में भारत 2018 की तुलना में चार पायदान की छलांग के साथ 44वें स्थान पर आ गया है. सूचना तकनीक के क्षेत्र में भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के साथ वैश्विक स्तर पर ठोस योगदान दिया है, लेकिन अत्याधुनिक व जटिल तकनीकों के मामले में हम अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाये हैं.
हमारा देश उन कुछ देशों में शामिल है, जहां कामकाजी लोगों की संख्या सबसे अधिक है, लेकिन शिक्षा, प्रशिक्षण व कौशल के अभाव में आवश्यक प्रतिभा की उपलब्धता बहुत कम है. अर्थव्यवस्था के संकुचन व घटती मांग के कारण छंटनी भी हो रही है. तकनीक में नये शोध को भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए क्योंकि 5-जी के मामले में हम कुछ पिछड़ते दिख रहे हैं. ऐसे में अगर सक्षम औद्योगिक नेतृत्व नहीं होगा, तो हम प्रतिस्पर्द्धा में आगे नहीं निकल पायेंगे.