10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अधिकारों की समीक्षा

सर्वोच्च न्यायालय ने संसद को सलाह दी है कि विधानसभा सदस्य को अयोग्य घोषित करने के सदन के अध्यक्ष के अधिकारों की समीक्षा की जाये. इस सलाह का आधार यह है कि अध्यक्ष भी किसी राजनीतिक दल का सदस्य होता है. न्यायालय ने ऐसे मामलों के निबटारे के लिए कोई स्वतंत्र व्यवस्था स्थापित करने का […]

सर्वोच्च न्यायालय ने संसद को सलाह दी है कि विधानसभा सदस्य को अयोग्य घोषित करने के सदन के अध्यक्ष के अधिकारों की समीक्षा की जाये. इस सलाह का आधार यह है कि अध्यक्ष भी किसी राजनीतिक दल का सदस्य होता है. न्यायालय ने ऐसे मामलों के निबटारे के लिए कोई स्वतंत्र व्यवस्था स्थापित करने का विचार भी दिया है.
संवैधानिक लोकतंत्र के सुचारु संचालन के लिए विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच अधिकारों व कार्यक्षेत्र का स्पष्ट विभाजन किया गया है, लेकिन संविधान में इन संस्थाओं में परस्पर संतुलन का प्रावधान भी है. संविधान के अभिभावक होने के नाते सर्वोच्च न्यायालय को समुचित आदेश, निर्देश और सुझाव देने का अधिकार है. अनेक मामलों में विधायिका अलग रुख भी अपना सकती है.
न्यायालय का सुझाव मणिपुर विधानसभा के एक विवाद के संदर्भ में दिया गया है. लेकिन यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि यदि विधानसभाओं के लिए कोई स्वतंत्र व्यवस्था की जाती है, तो लोकसभा में भी लागू करना पड़ सकता है. वर्तमान प्रावधानों के अनुसार, सदन की कार्यवाही और अयोग्यता के बारे में अंतिम निर्णय अध्यक्ष का होता है.
अक्सर ऐसे निर्णयों को सर्वोच्च या उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जाती है. स्वाभाविक है कि संसद के लिए इस सुझाव पर अमल करते हुए तुरंत किसी चर्चा में जाना या किसी नियमन का निर्धारण आसान नहीं होगा. हमारी संसदीय प्रणाली बहुत हद ब्रिटेन की व्यवस्था पर आधारित है, लेकिन सदन के अध्यक्ष के मामले में हमने उनके नियमों को स्वीकार नहीं किया है.
वहां हाउस ऑफ कॉमन्स के स्पीकर पद पर आसीन व्यक्ति अपने राजनीतिक दल से संबंध तोड़ लेता है और अगले चुनाव में उसके चुनाव क्षेत्र से उसे आम तौर पर निर्विरोध निर्वाचित किया जाता है. यही नियम क्षेत्रीय प्रतिनिधि सभाओं में भी है.
हमारे देश में कानूनी जटिलताओं के बावजूद भी दल-बदल करना या अपने सचेतक के निर्देशों का उल्लंघन करना आम बात है. दल-बदल का सीधा मामला सरकार गिरने व बनने से होता है. ऐसे में सदन के अध्यक्ष की भूमिका आरोप-प्रत्यारोप के घेरे में आ जाती है. इस पद पर बैठा व्यक्ति अपने दल के प्रति निष्ठा दिखाने के लिए अनुचित निर्णय भी दे सकता है. यदि स्वतंत्र समिति बनायी जायेगी, तो उसके सदस्य भी राजनीतिक दलों से ही संबद्ध होंगे, क्योंकि ऐसी समिति का गठन निर्वाचित सदस्यों से ही होगा. तब यह प्रश्न स्वाभाविक है कि इस समिति के निर्णयों को कैसे निष्पक्ष माना जा सकेगा.
इस संबंध में न्यायालय को विस्तृत सुझाव देना चाहिए और संसद को एक समिति बनाकर उसका अध्ययन करना चाहिए तथा संविधान विशेषज्ञों की राय भी लेनी चाहिए. अन्य संसदीय प्रणालियों के अनुभव भी उपयोगी हो सकते हैं. फिलहाल अयोग्यता के मामलों पर सदन के अध्यक्ष पारदर्शिता बरतते हुए जल्दी निर्णय देने का प्रयास करें, ताकि उनकी निष्पक्षता पर संदेह न किया जाये और न्यायालयों का समय भी बच सके.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें