विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी 153 देशों के लैंगिक समानता सूचकांक में भारत जहां 112वें पायदान पर पहुंच गया है, वहीं महिलाओं के स्वास्थ्य व उत्तरजीविता के मामले में उसका स्थान 150वां है. वर्ष 2006 से प्रारंभ हुए इस सूचकांक में हमारे देश की लगातार खराब होती स्थिति अर्थव्यवस्था और सुविधाओं के विस्तार पर गंभीर प्रश्नचिह्न है.
इस समस्या के समाधान में आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना बड़ी भूमिका निभा सकती है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, स्वास्थ्य सेवाओं तक महिलाओं की समुचित पहुंच नहीं होने के तीन प्रमुख कारण हैं- चिकित्सकीय सलाह व उपचार का महंगा होना, चिकित्सा केंद्रों व अस्पतालों का दूर होना तथा महिला चिकित्साकर्मियों की संख्या कम होना. इस सूचकांक में रेखांकित है कि महिलाओं के लिए आर्थिक अवसरों की उपलब्धता और बड़े पदों पर उनका प्रतिनिधित्व भी कम है. इससे उनकी आत्मनिर्भरता और निर्णय लेने की क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है.
सामाजिक सुधारों व वैधानिक व्यवस्थाओं के बावजूद बच्चियों के साथ जन्म से पहले ही भेदभाव शुरू हो जाता है, जो कमोबेश जीवनभर चलता रहता है. सीमित संसाधनों के कारण परिवार में स्वास्थ्य, पोषण और अन्य मामलों में पुरुष सदस्यों को प्राथमिकता मिलती है. ऐसा भी होता है कि कई समुदायों में महिलाएं पुरुष चिकित्सकों से उपचार कराने में हिचकती हैं.
निर्धन और न्यून आय वर्ग को लक्षित आयुष्मान भारत के तहत सबसे मुख्य प्रावधान उपचार के खर्च को लेकर है. नकदी के बिना इलाज की सुविधा का लाभ पाने में महिलाओं को मदद मिलेगी. इस योजना में बिना वयस्क पुरुष सदस्यों के परिवारों को लाभार्थी बनाने को प्राथमिकता दी गयी है और परिवार के आकार की सीमा भी निर्धारित नहीं की गयी है.
पूर्ववर्ती कल्याण योजनाओं में ऐसी व्यवस्थाएं नहीं होने से औरतों को नुकसान झेलना पड़ता है. जन आरोग्य योजना में जो 1,393 लाभ पैकेज हैं, उनमें से 116 औरतों, 64 पुरुषों तथा 1,213 दोनों के लिए हैं. उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि 50 वर्ष तक के उम्र के लाभार्थियों में महिलाओं की संख्या या तो अधिक है या पुरुषों के बराबर है. यह तथ्य संतोषजनक है और इस आधार पर 50 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की लैंगिक विषमता को पाटने में मदद मिल सकती है. इससे यह भी स्पष्ट है कि यह योजना सही दिशा में अग्रसर है.
इस संदर्भ में आंकड़ों का अध्ययन होते रहना चाहिए. स्वास्थ्यकर्मियों और संबंधित विभागों में लैंगिक विषमता के संबंध में जागरूकता बढ़ाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि मानसिकता में गहरे तक पैठ बना चुकी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह से भी छुटकारा मिले. महिलाओं का स्वास्थ्य बेहतर होने से सभी विकास सूचकांकों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा बच्चों को भी अच्छी देखभाल मिल पाती है. टीकाकरण, स्वच्छता व जानकारी देने जैसे अन्य प्रयासों से भी इस उद्देश्य को पाने में सहयोग मिलेगा.