जब भी किसी वीभत्स घटना पर जनता आक्रोशित होती है, तो उसे शांत करने के लिए सरकारें अनेक घोषणाएं कर देती हैं. लेकिन यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि तमाम वादों और दावों के बावजूद महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को रोकने में सरकारें विफल रही हैं. इस विफलता की एक बड़ी वजह शासकीय लापरवाही है. अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि संसाधनों की कमी के चलते कार्यक्रमों और उपायों को लागू कर पाना मुश्किल होता है.
लेकिन निर्भया कोष से आवंटित राशि का उपयोग नहीं होना यही इंगित करता है कि अपराधों पर अंकुश लगाना हमारी सरकारों और प्रशासनिक तंत्र की प्राथमिकताओं में कहीं बहुत नीचे है. सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा पीड़ितों की मदद करने के लिए 2013 में इस कोष की स्थापना की गयी थी. इसके तहत अब तक केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को 2,050 करोड़ रुपये आवंटित किया है, जिसमें से केवल 20 प्रतिशत राशि ही खर्च की गयी है.
बीते पांच सालों में गृह मंत्रालय द्वारा मुहैया कराये गये अतिरिक्त 1,656 करोड़ रुपये में से मात्र नौ प्रतिशत ही खर्च हुए हैं. महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा और दमन एवं दीयू ने तो गृह मंत्रालय के आवंटन से एक रुपया भी उपयोग नहीं किया है. उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, कर्नाटक और दिल्ली ने कमोबेश पांच प्रतिशत खर्च किया है.
किसी भी राज्य के व्यय का हिसाब 50 प्रतिशत से अधिक नहीं है. महिला एवं बाल विकास तथा गृह मंत्रालयों के अलावा केंद्रीय विधि मंत्रालय भी निर्भया कोष में धन देता है, किंतु किसी भी राज्य ने इस अंश का उपयोग नहीं किया है. इस कोष के तहत राज्यों की मांग और आवश्यकता के अनुरूप तुरंत आवंटन करने की व्यवस्था है. यह चिंता की बात है कि पांच सालों में बलात्कार, उत्पीड़न, हत्या व अपहरण जैसे अपराधों की बढ़ती संख्या के बावजूद राज्य सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं.
निर्भया कोष का उपयोग न करने का दोष लगभग सभी प्रमुख राष्ट्रीय व राज्य-स्तरीय दलों का है, क्योंकि इन वर्षों में वे सत्ता में रहे हैं. बतौर विपक्ष भी विभिन्न दलों ने इस मसले को नहीं उठाया है. दिल्ली में निर्भया के साथ हुई नृशंस घटना के सात साल हो चुके हैं. इस अंतराल में बलात्कार और हत्या की अनगिनत घटनाएं हो चुकी हैं तथा सवा लाख से अधिक मामले न्यायालयों में लंबित हैं.
इस मसले का एक भयावह पहलू यह भी है कि महिलाओं के विरुद्ध होनेवाले अधिकतर अपराधों की शिकायत पुलिस और अदालत तक पहुंच ही नहीं पाती है. निर्भया कोष के धन के समुचित उपयोग न करने की लापरवाही के लिए राज्य सरकारों को खेद प्रकट करना चाहिए और आगे से ऐसी भूल न करने का आश्वासन जनता को देना चाहिए. अगर इस आवंटन को ठीक से खर्च किया जाता, तो हजारों घटनाओं को रोका जा सकता था और महिलाओं के मन में सुरक्षा का भाव पैदा किया जा सकता था.