लोकनाथ तिवारी
प्रभात खबर, रांची
जासूसी के जरिये सफल होने का गुर पत्नियों को बखूबी आता है. इसी के बूते वे घर-परिवार की सत्ता पर काबिज हो कर अपने शौहर को ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार को अपनी उंगलियों पर नचाती है.
अजी नचाती क्या, गवाती, हंसाती और रुलाती भी हैं. पति व सास-ससुर के सीक्रेट हथिया कर पूरे परिवार की नकेल अपने हाथों में लेने का हुनर कोई इन पत्नियों से सीख सकता है. लगता है हमारी नयी सरकार भी इसी फारमूले पर चल रही है. अखबार में पढ़ा कि भाजपा के शीर्ष नेताओं की जासूसी करायी जा रही है.
नितिन गडकरी के घर जासूसी उपकरण मिलने के बाद अभी बात ठीक से दबी भी नहीं थी कि और कई शीर्ष नेताओं की जासूसी का मामला सामने आ गया है. इससे तो यही लगता है कि इसका कनेक्शन कहीं न कहीं बीवियों के नुस्खे से जुड़ा है. कहा भी गया है कि जासूसी वही कराते हैं, जो आपके अपने खास व नजदीकी हों. कहीं नयी सरकार भी तो अपनों की नब्ज टटोलने में नहीं जुटी है.
राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज की जासूसी का मामला सामने आने पर तो ऐसा ही लगता है. हालांकि इसमें सिर्फ संदेह ही व्यक्त किया गया है, अभी इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है. भाजपा के आलाकमान अमित शाह पर भी आरोप है कि उन्होंने अपने आका के कहने पर एक महिला की जासूसी करायी थी.
अतीत के उदाहरण से यह बात भी साफ है कि इन मामलों की सच्चई भी जनता के सामने कभी नहीं आयेगी. इससे पहले भी कई नेताओं की जासूसी का मामला सामने आ चुका है, जिसमें मुरली मनोहर जोशी, अरुण जेटली, विजय गोयल, सुधांशु मित्तल जैसे नेताओं के अलावा पूर्व आइपीएल कमिश्नर ललित मोदी का नाम भी शामिल है. इससे पहले 2005 में पूर्व सांसद अमर सिंह के फोन टैपिंग का मामला भी सामने आ चुका है.
कांग्रेस सरकार के रक्षा मंत्री एके एंटनी के कार्यालय में गुप्त तौर पर माइक्रोफोन लगाने की खबर आयी थी. लाल कृष्ण आडवाणी ने भी यूपीए शासन के दौरान ये आरोप लगाया था कि उनकी जासूसी हो रही है. मेरी याद में इस तरह का पहला मामला प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दफ्तर में जासूसी का था, लेकिन बाद में इस पर भी पर्दा डाल दिया गया.
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी आरोप लगाया था कि वीपी सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में उनके खिलाफ जासूसी की गयी थी. कुल मिला कर जासूसी का नुस्खा कोई नया नहीं है. हमारे सर्वज्ञानी काका भी कहते हैं कि अपने लोगों की पोल पट्टी हाथ में होने पर जीवन सरल हो जाता है. कोई चूं-चपड़ नहीं कर सकता. काकी के सामने काका के घिघियाने का राज भी यही है. टोला, मुहल्ला से लेकर गांव-जवार की समस्याओं को चुटकी में हल करनेवाले काका की बुद्धि भी घर में घुसते ही घुटने से नीचे उतर जाती है. अब तो यही लगता है कि नयी सरकार भी बीवियोंवाला नुस्खा अपनाने पर तुल गयी है. अब इसे सफल होने से कौन रोक सकता है!