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पीओके में राजनीतिक परिवर्तन!

प्रो सतीश कुमार अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार singhsatis@gmail.com पिछले दिनों मन की बात में प्रधानमंत्री ने कश्मीर समस्या की चर्चा की थी. उन्होंने कहा था कि विकास बंदूक और बम पर भारी पड़ रहा है. फिजा बदल रही है. इसके पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की अमेरिकी यात्रा के समय अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक […]

प्रो सतीश कुमार

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार

singhsatis@gmail.com

पिछले दिनों मन की बात में प्रधानमंत्री ने कश्मीर समस्या की चर्चा की थी. उन्होंने कहा था कि विकास बंदूक और बम पर भारी पड़ रहा है. फिजा बदल रही है. इसके पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की अमेरिकी यात्रा के समय अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक शगूफा छोड़ा था कि भारत के प्रधानमंत्री ने उन्हें कश्मीर पर मध्यस्थता के लिए निमंत्रण दिया है.

हैरतअंगेज बात यह है कि जिस देश की विदेश नीति वर्षों से कश्मीर को द्विपक्षीय मानती हो, वह क्यों किसी तीसरी ताकत को निमंत्रण देगा? इसे लेकर संसद में खूब हंगामा हुआ, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति की टिप्पणी किसी अबोध बालक की टिप्पणी नहीं है, इसके कई मायने निकाले जा सकते है.

क्या अमेरिका अब कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की ओर खिसक रहा है या अफगानिस्तान समीकरण को अपने पक्ष में करने के लिए वह पाकिस्तान की खिदमत कर रहा है? कश्मीर को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी शुरू से संवेदनशील रहा है और उसकी एक इकाई जम्मू-कश्मीर में वर्षों से काम कर रही है, लेकिन यहां प्रश्न यह है कि पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर भारत सरकार चुप क्यों है? कूटनीतिक हलकों में भारत पीओके की चर्चा करता है, लेकिन उसको भारत में विलय के लिए कोई भी सार्थक प्रयास अब तक नहीं हुआ है.

साल 1965 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना ने पीओके के बड़े हिस्से पर कब्जा जमा लिया था, लेकिन ताशकंद समझौते के तहत उसे वापस करना पड़ा. कारगिल युद्ध में भी ऐसी स्थिति बनी थी, वह भी बेकार हो गयी. जब हम चीन के ओबीआर का विरोध इस तर्क पर करते हैं कि चीन का रास्ता भारत के जम्मू-कश्मीर से होकर गुजरता है, जो भारत का अभिन्न अंग है, तो फिर देश इस विषय पर मौन क्यों है? फिलवक्त तो भारत में एक मजबूत सरकार और प्रधानमंत्री भी है.

संघ के वरिष्ठ अधिकारी और राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण (फैंस) मंच के मुखिया इंद्रेश कुमार का मानना है कि विलय की राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए. संसद का वह प्रस्ताव (22 फरवरी, 1994) भी देश के सामने है, जो कहता है कि पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है, इसलिए भारत हर कीमत पर उसको वापस लेगा. जम्मू कश्मीर की विधानसभा में 24 सीटें भी, जो खाली हैं, इंद्रेश कुमार के अनुसार प्रत्यक्ष चुनाव या मनोनयन द्वारा इन पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए.

अगर हम इतिहास के पन्नों और आज के सामरिक समीकरण की बात करें, तो समस्या पीओके के कारण ही पैदा होती है. भारत की सीमा अफगानिस्तान से टूट गयी, जिसका फायदा पाकिस्तान और चीन को हुआ.

पाकिस्तान ने उसी क्षेत्र से तकरीबन पांच हजार स्क्वाॅयर किमी क्षेत्र चीन को दे दिया. चीन ने इस रूट के जरिये भारतीय हिंद महासागर में अपनी पहुंच बना ली. चीन की सीपेक परियोजना भी इसी की वजह से फल-फूल रहा है. इसलिए समझना जरूरी है कि पीओके कैसे बना और उसकी विसात क्या है? इस बात को स्पष्ट किया जाए. उसके बाद ही यह बात समझ में आयेगी कि उसको लेना कितना जरूरी है.

जम्मू-कश्मीर राज्य का विलय भारत में संवैधानिक तरीके से हुआ था. महाराजा हरी सिंह ने पांच मार्च को यह प्रस्ताव अपने मत्रिमंडल से स्वीकृत किया था. अगला प्रस्ताव 20 जून, 1949 को आया था. शेख अब्दुल्लाह ने विधानसभा में यह बात कबूल की थी कि जम्मू-कश्मीर भारत के साथ जुड़ गया है.

विधानसभा द्वारा संविधान बनने पर 17 नवंबर, 1956 को वह पूरा क्षेत्र भारत का अंग बन गया. जब भी बात जम्मू-कश्मीर की होती है, तो उसमें वह क्षेत्र भी अता है, जिसे जबरन पाकिस्तान ने हथिया लिया था. यह क्षेत्र 1947 के आक्रमण के दौरान लिया गया था, जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर के नाम से पुकारता था. बाद में उसने इस क्षेत्र के दो फाड़ कर दिये. जम्मू और कश्मीर अधिकृत पाकिस्तान और गिलगित-बाल्तिस्तान.

भारत की वैश्विक स्थिति किसी बाहरी शक्ति की वजह से नहीं, बल्कि अपनी आर्थिक विकास और सैनिक शक्ति के कारण बनी है. समय की जरूरत है कि अब हम आजाद कश्मीर या पीओके को लेने की बात करें.

यह क्षेत्र अफगानिस्तान और मध्य एशिया को जोड़ता है. भारत कई स्तरों पर पाकिस्तान के साथ बातचीत कर चुका है. शिमला समझौते से लेकर लाहौर संकल्पना में दोस्ती और मित्रता की बात दोहरायी गयी, लेकिन इसका हल नहीं निकला. बदले में पाकिस्तान ने चीन के बीच बंदरबांट कर कश्मीर की स्थिति को और भी पेचीदा बना दिया.

चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नीति उसको कश्मीर में मिली जमीन की वजह से ही सफल हुई है. चीन अपनी चाल के तहत श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान के बीच अपना घेरा बना चुका है. जब चीन सिंकियांग में डेमोग्राफिक परिवर्तन करता है, तो दुनिया कुछ भी नहीं बोलती और मुस्लिम देश भी चुप्पी साधे रहते हैं.

भारत के पास अपने अधिकार लेने का संवैधानिक आधार है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर का विलय न्याय संगत तरीके से हुआ है. अगर कश्मीर के भीतर परिवर्तन को अंजाम देना है, तो पाक अधिकृत कश्मीर में भी राजनीतिक परिवर्तन की शुरुआत करनी होगी. इसकी शुरुआत वहां की विधानसभा की सीटों के भरने के साथ लोकसभा में एक सीट मनोनयन द्वारा अारक्षित रखने से जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व संसद में सशक्त ढंग से हो सकता है.

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