आज बिहार के किसी भी शहर की पहचान गंदगी व कीचड़ पर बसे नगर की हो चुकी है. शायद ही कोई ऐसा जिला है जिसे आदर्श कहा जा सके. राजधानी की भी छवि कोई अच्छी नहीं कही जा सकती है. सवाल यह है कि नगर निगम, नगर पर्षद, नगर पंचायत के रहते सभी नगरों की यह दशा है.
आखिर किसकी जिम्मेदारी बनती है. आम जनता सिर्फ वोट देने की मशीन बनकर रह गयी है. उसका अच्छी नागरिक जिंदगी जीने का अधिकार छीनता जा रहा है. जनप्रतिनिधि कब तक जनता के साथ छल करते रहेंगे. स्थिति देख स्पष्ट होता है कि अधिकारी हों या जनप्रतिनिधि अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर रहे हैं.
लोकतंत्र जिम्मेदारी से भी चलता है, हम जब तक जवाबदेही तय नहीं करेंगे, अकर्मण्य कर्मियों को सजा नहीं देंगे बात नहीं बनेगी. आखिर बिना जवाबदेही के लोकतंत्र कैसे चल सकता है. सरकार को चाहिए कि वह सभी कि जिम्मेदारी कठोरता के साथ तय करे.
राजेश कुमार सिंह, एकमा (सारण)