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श्रम सुधार की पहल

केंद्र सरकार ने श्रम कानूनों की संरचना में व्यापक परिवर्तन का निर्णय लिया है. देश के 40 करोड़ कामगारों की बेहतरी तथा व्यापारिक गतिविधियों को सुगम बनाने के लिए ऐसे सुधारों की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी. अभी देश में श्रम से संबंधित 44 केंद्रीय और राज्य के 100 से अधिक […]

केंद्र सरकार ने श्रम कानूनों की संरचना में व्यापक परिवर्तन का निर्णय लिया है. देश के 40 करोड़ कामगारों की बेहतरी तथा व्यापारिक गतिविधियों को सुगम बनाने के लिए ऐसे सुधारों की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी.

अभी देश में श्रम से संबंधित 44 केंद्रीय और राज्य के 100 से अधिक कानून हैं. श्रम मंत्रालय ने केंद्रीय कानूनों को चार भागों में समाहित करने की पहलकदमी की है. इस सिलसिले में कैबिनेट ने 13 श्रम कानूनों का विलय कर कामकाजी सुरक्षा, स्थिति और स्वास्थ्य से संबंधित एक कानून बनाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. इस कानून के तहत वे सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठान आयेंगे, जहां 10 या इससे अधिक लोग काम करते हैं.

बंदरगाहों व खनन कारोबार में एक कामगार होने पर भी यह कानून लागू होगा. नये कानून में नियुक्ति पत्र देने और सालाना स्वास्थ्य जांच को अनिवार्य बना दिया गया है. कंपनियों को महिला कामगारों के लिए शाम सात बजे के बाद सुरक्षा का इंतजाम करना होगा. ओवरटाइम के लिए कामगार की सहमति लेनी जरूरी होगी और महीने में 125 घंटे से अधिक ओवरटाइम नहीं होगा. कंपनियों के लाइसेंस से जुड़ीं अनेक जटिलताओं को भी आसान बना दिया गया है. इससे पहले वेतन-भत्तों के समुचित और समय पर भुगतान के एक कानूनी प्रस्ताव को भी कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है.

संसद के चालू सत्र में दोनों विधेयकों को पेश किया जाना है. अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए निवेश बढ़ाने और कामकाजी हालात बेहतर करने की जरूरत है, पर मौजूदा श्रम कानूनों के कारण कारोबारियों को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है तथा कामगारों के हितों की सुरक्षा भी ठीक से नहीं हो पाती है. विभिन्न कानूनों के एक साथ होने से भ्रम और विरोधाभास भी कम होंगे. कुछ राज्यों में न्यूनतम दैनिक मजदूरी 50 और 60 रुपये है. वेतन कानून बनने के बाद यह कम-से-कम 178 रुपये रोजाना हो जायेगी और राज्य अपनी इच्छा से इसमें बढ़ोतरी भी कर सकेंगे.

कामगारों की बहुत बड़ी संख्या होने तथा अर्थव्यवस्था के रूप में तेज बदलाव के बावजूद भारत में श्रम सुधारों पर न के बराबर ध्यान दिया गया है. इन प्रस्तावित विधेयकों से इसमें बदलाव की उम्मीद है. रोजगार और श्रम से जुड़े मुद्दों पर ध्यान दिये बिना आर्थिक विकास में अपेक्षित गतिशीलता नहीं आ सकती है. श्रमिक और निवेशक-प्रबंधक के हितों में समुचित संतुलन भी आवश्यक है.

सरकार तथा श्रमिक संगठनों के बीच कुछ अहम मसलों से जुड़े कानूनी बदलाव, जैसे- नौकरी से निकालना, छंटनी, वेतन, पेंशन, सामाजिक सुरक्षा, संगठन बनाने के अधिकार तथा हड़ताल पर पाबंदी आदि पर सालों से मतभेद रहे हैं. प्रस्तावित दो विधेयक इंगित करते हैं कि सरकार कारोबारियों और कामगारों के सुझावों और मांगों को लेकर संवेदनशील है. उम्मीद है कि सुधारों की यह प्रक्रिया विकास और समृद्धि की राह को मजबूत करेगी.

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