कविता विकास
लेखिका
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धूप-छांव और सुख-दुख
कविता विकासलेखिकाkavitavikas28@gmail.com वैशाख का महीना. चिलचिलाती धूप.आदमी क्या, पशु-पक्षी भी अपने-अपने दड़बे में दुबके रहते हैं. ग्यारह बजते-बजते गलियां सुनसान पड़ जाती हैं. गरमी और पसीने से बेहाल लोग मौसम को कोसते हैं. इसके विपरीत जो मौसम की प्रतिकूलता को सहज भाव से स्वीकार करते हैं, वे स्वस्थ और सक्रिय होते हैं. हम जितना खुद […]
वैशाख का महीना. चिलचिलाती धूप.आदमी क्या, पशु-पक्षी भी अपने-अपने दड़बे में दुबके रहते हैं. ग्यारह बजते-बजते गलियां सुनसान पड़ जाती हैं. गरमी और पसीने से बेहाल लोग मौसम को कोसते हैं. इसके विपरीत जो मौसम की प्रतिकूलता को सहज भाव से स्वीकार करते हैं, वे स्वस्थ और सक्रिय होते हैं. हम जितना खुद को छुपायेंगे, प्रतिरोधक क्षमता उतनी ही कमजोर होगी. कहने का तात्पर्य यह नहीं कि असह्य धूप में निकल जायें और बीमार पड़ जायें, पर जितना हो सके सहजता से अपना काम करते रहें.
अब जब कूएं और तालाब सूख रहे हैं, पक्षियों की कोलाहल भी लुप्त होने को है, धूप में आंखें चौंधियाकर बंद हो रही हैं, तो थोड़ा घर के पास उगे दूब को निहार लें. लघुता ते प्रभुता मिले वाली बात चरितार्थ हो जायेगी! सड़क किनारे लगे दानी अमलतास धरती का आंचल हल्दिया रहा है. महुआ अपनी पीत मुस्कान में वायवी उड़ानों संग मधुर-मदिर शोखी छलकाता गिर रहा है.
गुलमोहर सदियों से प्रेयसी-प्रियतम के रूप-सौंदर्य में उपमान बन शृंगरित होता रहा है और जिंदगी की धूप में भी आशा का संचार कर रहा है. सेमल नर्म रुई जैसी नर्म कल्पनाओं का प्रतीक बन खड़ा है. गजब है यह नैसर्गिक रूप-लावण्य, मानो धरती के सबसे चेतनशील प्राणी को जिंदगी की तकलीफों में भी तटस्थ रहने की प्रेरणा दे रहा हो.
कहते हैं, मौसम के अनुसार फसल उगते हैं. अपने आस-पास करेले, परवल, नेनुआ, तोरी आदि की बेलों को देखें. कैसे पतली-पतली डालियां बढ़कर मचानों में चढ़ जाती हैं. जितनी प्रखर धूप होगी उतनी ही हरी-हरी इनकी पत्तियां होंगी. देश के खेतिहर समाज फसल के पकने के लिए प्रचंड धूप का इंतजार करते हैं और जमीं से सोना समेटकर पूरे देश को यह उपहार बांटते रहते हैं.
हमारे ऊपर भी दुख के गहरे बादल हमें बलवान और सहनशील ही बनाते हैं. आह से उपजा गान में वियोगी कवि की वेदना चरम सीमा पर होती है, जैसे धूप से कातर बेली, चमेली, मालती के पौधे हरियाली के साथ-साथ खुशबू भी बिखेरते रहते हैं.
मौसम प्रकृति की ओर लौटने का संदेश देते हैं और गरमी सीधे-सीधे वृक्ष से नाता जोड़ती है. इसलिए हमें खूब पेड़ लगाने चाहिए. कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. पर कुछ खोकर अगर बहुत कुछ मिल जाये, तो क्या कहने. थोड़ी गरमी सहन कीजिये तो अच्छी बारिश मिलेगी, मौसमी फल-फूलों का सेवन करने को मिलेगा, धूप में लहलहाते पेड़ों के नयनाभिराम दृश्य मिलेंगे, भरपूर अनाज और देश की किसानी संस्कृति को शक्ति मिलेगी.
गर्मी बेसहारों के लिए वरदान है. जिंदगी की धूप भी क्षणिक है, छांव मयस्सर होती ही है. बस मन में ठान लें, गरमी है तो क्या, आकर्षण उसमें भी है. प्रकृति में धूप और छांव का सबसे सुंदर समायोजन है, जिंदगी के लिए शीत और ताप दोनों आवश्यक हैं. अतिशय दुख मनुष्य को तोड़ देता है तो अतिशय सुख उसे स्वार्थी और घमंडी बना देता है. इसलिए बारी-बारी से सुख-दुख का आवागमन उसे धरातल से जोड़े रखता है.
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