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व्यापार सुधार जरूरी

बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था वैश्वीकरण का आधार है. लेकिन आज यह व्यवस्था संकटग्रस्त है. ऐसे में इसकी नियामक संस्था विश्व व्यापार संगठन में ठोस सुधारों की जरूरत है. संरक्षणवादी नीतियों के तहत एकतरफा शुल्कों की घोषणा और उनकी प्रतिक्रिया के कारण व्यापार युद्ध की स्थिति बनी हुई है. अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर संगठन में कोई सहमति […]

बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था वैश्वीकरण का आधार है. लेकिन आज यह व्यवस्था संकटग्रस्त है. ऐसे में इसकी नियामक संस्था विश्व व्यापार संगठन में ठोस सुधारों की जरूरत है. संरक्षणवादी नीतियों के तहत एकतरफा शुल्कों की घोषणा और उनकी प्रतिक्रिया के कारण व्यापार युद्ध की स्थिति बनी हुई है. अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर संगठन में कोई सहमति नहीं बन पा रही है तथा कई विवाद लंबित हैं.
भारत ने इन समस्याओं को रेखांकित करते हुए इन्हें अस्तित्व के लिए चुनौती कहा है. इस संगठन में सुधार के प्रयास भी असंतुलित हैं तथा इनसे विकासशील और अविकसित देशों को ही नुकसान होने की आशंका है. संरक्षणवादी नीतियों का सर्वाधिक नकारात्मक असर गरीब देशों को ही भुगतना पड़ रहा है.
दिल्ली में 22 सदस्य देशों की बैठक में भारत ने एकजुटता का आह्वान किया है. किसी सदस्य देश द्वारा मनमाने ढंग से एकतरफा फैसला लेने से संबंधित नियमों में बदलाव करने का एक प्रस्ताव भी भारत ने इस बैठक से पहले दिया है. इस पहल को अनेक देशों समेत चीन और दक्षिण अफ्रीका का भी समर्थन है. अमेरिका इसका विरोध कर रहा है. राष्ट्रपति समेत ट्रंप प्रशासन के कुछ सदस्य भारतीय शुल्कों पर आपत्ति करते रहे हैं.
इसके अलावा विकसित देशों ने अक्सर भारत और अन्य कुछ देशों के कृषि उत्पादों को लेकर भी सवाल उठाया है. बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को सभी पक्षों के लिए लाभदायक बनाने की बहस में यह बात याद रखी जानी चाहिए कि 2001 में दोहा बैठक में कृषि अनुदान, बाजार में पहुंच और सेवाओं को लेकर एजेंडा तय हुआ था. इसका मुख्य उद्देश्य विकास था. लेकिन, ऐसा लगता है कि समय बीतने के साथ इन मुद्दों पर विकसित देशों की रुचि कमतर होती गयी है.
अब उनका अधिक ध्यान अपने देशों के कॉरपोरेट हितों को साधने पर है, न कि वैश्वीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर. आम तौर पर संगठन में किसी एजेंडे या नियमन को व्यापक सहमति से ही लाने की परिपाटी रही है. विकसित देश अल्पविकसित देशों को अपने पाले में लाने में सफल रहते हैं, जैसा कि दिसंबर, 2017 की बैठक में हुआ था.
ये देश आर्थिक और वित्तीय रूप से विकसित देशों पर निर्भर हैं, सो उनके लिए विरोध करना बेहद मुश्किल होता है. इ-कॉमर्स, मछली पालन अनुदान, विशेष दर्जा, विवाद निपटारे की व्यवस्था आदि मुद्दों पर बैठकें होनी हैं. इनमें विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच तनातनी के पूरे आसार हैं. पहले की बैठकों में विकासशील देश एकजुटता के कारण ही अपने पक्ष में निर्णय कराने में सफल रहे हैं. भारत लगातार एकता बनाने की कोशिश में है.
अब देखना यह है कि क्या ऐसा हो पायेगा, क्योंकि अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों की तरह विश्व व्यापार संगठन भी ताकतवर देशों के लिए स्वार्थ पूरा करने की जगह बन चुका है. अगर सकारात्मक सुधारों के लिए भारत के आह्वान पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वैश्विक वाणिज्य एवं व्यापार की वर्तमान अस्थिरता गंभीर होती जायेगी.

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