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निरंकुश राजनीति लोकतंत्र कत्तई नहीं

तृणमूल कांग्रेस के सांसद तापस पाल का प्रतिशोध की भावना से भरा बयान दरअसल, राजधर्म से विचलन के इक्के-दुक्के उदाहरणों में नहीं, जो इसे अपवाद कह कर खैर मनायी जाये. तापस के मुंह से निकले शब्द पश्चिम बंगाल की राजनीतिक संस्कृति के विषाक्त होने की सूचना है. यह ठीक है कि तापस की पत्नी ने […]

तृणमूल कांग्रेस के सांसद तापस पाल का प्रतिशोध की भावना से भरा बयान दरअसल, राजधर्म से विचलन के इक्के-दुक्के उदाहरणों में नहीं, जो इसे अपवाद कह कर खैर मनायी जाये. तापस के मुंह से निकले शब्द पश्चिम बंगाल की राजनीतिक संस्कृति के विषाक्त होने की सूचना है. यह ठीक है कि तापस की पत्नी ने निजी तौर पर इस बयान पर खेद जताया.

हालांकि, बाद में पार्टी के स्पष्टीकरण मांगने पर तापस ने माफी मांग ली है. लेकिन यह दामन बचाने की सजावटी कोशिश भर है. इससे पश्चिम बंगाल की राजनीतिक संस्कृति का जहरीलापन कम नहीं होनेवाला. प्रतिस्पर्धी के समूल नाश की भावना से प्रेरित यह एक असाधारण बयान है और शब्द-प्रयोग के लिहाज से नया चाहे जितना जान पड़े, लेकिन पश्चिम बंगाल में तृणमूल ने शासन में रहते ऐसे बयानों का एक सिलसिला कायम किया है. यह सिलसिला साफ संकेत करता है कि मां-माटी-मानुष के नारे वाली तृणमूल कांग्रेस की सोच ‘मां’ यानी स्त्री की तरफदारी में नहीं है.

याद करें, दो साल पहले पार्क-स्ट्रीट बलात्कार-कांड में स्वयं मुख्यमंत्री ने किस तरह मीडिया पर मामले को सनसनीखेज बना कर पेश करने का आरोप लगाया. पार्क-स्ट्रीट बलात्कार-कांड पर तृणमूल की वरिष्ठ नेता काकोली घोष दस्तीदार की राय थी कि पीड़िता अपनी बदचलनी की वजह से बलात्कार का शिकार हुई. बहरहाल, तापस पाल ने स्त्री-विरोधी बयान के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए उसे मानुष-विरोधी मुकाम तक पहुंचा दिया है. उनका तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर हमला होने की स्थिति में माकपा कार्यकर्ताओं को जान से मारने और उनकी स्त्रियों से बलात्कार करने की धमकी से भरा बयान पुराने वक्त के निरंकुश आक्रांताओं जैसी सोच का ही सूचक है.

पुराने आक्रांता अपने विरोधी के समूल नाश की भावना से प्रेरित होकर पुरुषों की हत्या, स्त्रियों का बलात्कार और पुस्तकालयों का नाश करते थे, ताकि विरोधी अपने समूल नाश को प्राप्त हो. एक समय में माकपा ने स्वयं को संपूर्ण समाज समझने की भूल करते हुए शेष हर कुछ को विरोधी मान कर उसे नष्ट करने की कोशिश की थी, आज इसी मनोभाव का परिचय तृणमूल कांग्रेस दे रही है. यह समूल नाश को प्रेरित निरंकुश राजनीति है, लोकतंत्र कतई नहीं!

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