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एक बार जानवर हो जाऊं!
संतोष उत्सुक व्यंग्यकार santoshutsuk@gmail.com जिंदगी के बासठ सालों में देश के कर्मठ सेवकों की तरह, हृदय परिवर्तन तो मैं नहीं कर सका, मगर अब चोला बदलने को जी करता है. आप पूछेंगे, जैसे आत्मा चोला बदलती है! जी नहीं, तेजी से बदलते देश में कुछ नया, कुछ अलग करना चाहता हूं, जो पहले किसी ने […]
संतोष उत्सुक
व्यंग्यकार
santoshutsuk@gmail.com
जिंदगी के बासठ सालों में देश के कर्मठ सेवकों की तरह, हृदय परिवर्तन तो मैं नहीं कर सका, मगर अब चोला बदलने को जी करता है. आप पूछेंगे, जैसे आत्मा चोला बदलती है! जी नहीं, तेजी से बदलते देश में कुछ नया, कुछ अलग करना चाहता हूं, जो पहले किसी ने ना किया हो. दिल चाहता है कि सरकार अब मुझे जानवर घोषित कर दे.
मेरी कोई खास पसंद नहीं है, जैसे ‘उनको’ पहले तोता कहा जाता था और अब लड़ने लगे तो बिल्लियां बताया जा रहा है. बस जानवर होने का प्रमाण पत्र मिल जाये, चाहे नकली ही हो, पर लगना असली चाहिए.
सरकार अगर न्यू इंडिया में नये प्रयोग के अंतर्गत मान जाये तो मैं गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी, कुतिया या मोरनी घोषित होना चाहूंगा, क्योंकि इससे फीमेल जानवर सशक्तीकरण भी मजबूत होगा.
इस बात पर समझदार सरकारी कारिंदे थोड़ा पंगा कर सकते हैं कि आवेदक क्योंकि पुलिंग है, इसलिए मेल जानवर जैसे, बैल, सांड़, बकरा, मुर्गा, कुत्ता या मोर ही घोषित किया जा सकता है. सफल सरकार ने गाय, सांड़, बैल, बछड़े, ऊंट व और उनके कई साथियों के लिए सुरक्षा उगाऊ आदेश जारी किये हैं. आदेशों के बारे में पता लगते ही मेरी जानवर होने की तमन्ना जवान हो गयी है. इसमें सुरक्षा का गाढ़ा तत्व भी दिख रहा है मुझे. धीरे-धीरे जानवर वाली फीलिंग भी आनी शुरू हो गयी है. विश्वास पैदा हो गया है कि हमेशा सफल जुगाड़ तंत्र के माध्यम से किसी शुभ दिन यह काम हो ही जायेगा.
इंसान के रूप में तो मेरी बलि कितनी ही बार दी जा चुकी है. एक बार जानवर घोषित होने में सफलता मिल जाये तो कानूनन, मेरी धार्मिक बलि तो कतई न दी जा सकेगी. यह बात अच्छी तरह समझता हूं कि धर्म के पथ पर इंसानों की बलि जब चाहे देने की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा रही है हमारी और अच्छे दिनों के कारण पुन: विकसित भी हो रही है.
कोई बता रहा था कि छह महीने तक पशु को बेचा भी नहीं जा सकेगा. इंसान और इंसानियत को दिन दहाड़े चाहे चार सौ बीस बार बेच लो. वैसे भी अब हमारा देश दुनिया का स्वतंत्र रूप से पहला शाकाहारी देश बनने की राह पर है. एक बार हो जाये, तो हम सब महंगी ऑर्गेनिक सब्जियों के जेनेरिक वर्जन ही खाया करेंगे.
कुछ दिन पहले एक सुप्रसिद्ध पत्रिका में यह पढ़कर मुझे बहुत हैरानी हुई कि दूध का रासायनिक विश्लेषण करें, तो यह भी मांसाहारी साबित होता है. इस संदर्भ में मेरी पत्नी का कहना है कि ‘विश्वास’ बड़ी चीज होती है. संविधान में देश के नागरिकों को कुछ भी खाने का अधिकार दिया गया है, मगर यहां तो आदमी ही इंसान को निगलने को तैयार है.
वैसे मुझे तो क्या लेना, मेरा स्वार्थ तो ‘जानवर’ होकर सुरक्षित हो जाना है. जानवर इंसानों से ज्यादा वफादार व प्रकृति के नियमों का पालन करनेवाले होते हैं. सरकार उन्हें इंसानों से ज्यादा खाने को देती है. सुरक्षा कवच भी तो मिलता है. आप सब मिलकर मेरे ‘जानवर’ होने की दुआ करें.
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